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Wednesday 29 July 2009

अजनबी हाथों का लम्स...

कितनी गमगीन रात थी वो भी…दोस्तों के हमराह हम भी मयखाने चल पड़े...मुझे पता था कि तुझे शराब नही पसंद है इसी वजह से मैं जाने से कतरा रहा था...मगर क्या करता उन्हों ने कागज़ की कश्ती और बारिश के पानी का वास्ता दे दिया...जाना तो पड़ ही गया...हाँ मैं ने शर्त लगा दी थी मैं पियूं गा नही...दोस्तों की हामी के बाद उस दुनिया को चल पड़े जहां पर हर कोई अपना ग़म गलत करने पहुंते हैं...पहली बार नाईट क्लब का माहौल देखा था...सुना तो बहुत कुछ था मगर आज जब अपनी आंखों से देखा तो अंदाजा हुआ कि आखिर लोग यहां क्यों आते हैं...यहां तो दुनिया ही अलग होती है...हाँ नफरत और वहशत भरी दुनिया से बिलकुल अलग...हर कोइ दिल खोल कर हर किसी का साथ इस तरह देता है मानो बरसों से एक ही थाली में खाते चले आए हों...कदम जमीन पर टिकने के लिए राज़ी नही होते हैं फिर भी दो पैग लगाना कुबूल होता है...हाँ पीने वालों का मकसद भी अलग अलग होता है...कोइ तो अपनी हसीन महबूबा की जुदाई का वास्ता देकर पीता है तो कोइ किसी दिलफरेब हसीना की बेवफाइ से घायल हो कर पीता है...कोई किसी के मधभरे होंटों के तसव्वुर में पीता है तो कोइ उसे भूल जाने के लिए पीता है...कोइ होश में नही था कोइ किसी के नाम पर पिला रहा था तो कोइ किसी की ख़ातिर पी रहा था कोइ अपने दोस्त और कोइ अपने महबूब के हमराह बेखुदी के चंद लमहात बटोरने चला आया था...मयनोशी का दौर पूरे शबाब पर था,नाइट कलब खचाखच भरा हुआ था…हाँ दोस्तों ने भी अपनी पसंद ऑर्डर कर दी थी...मैं ने एक खाली कुर्सी देखी और बैठ गया...क्योंकि मुझे पीना तो था नही...मैं तो बस उनका दिल रखने के लिए चला आया था...
कहते है पहली बार जो चीज़ मिलती है वो बहुत दिलचस्प लगती है...दूसरे हादसों की तरह ये हादसा भी मेरी जिंदगी में पहली बार हुआ था...पहली बार क्लब में आकर मैं यहां की हर चीज को अपनी यादों की ड़ायरी में कैद कर लेना चाहता था...मैं वहां की हर चीज़ को बहुत गौर से देख रहा था...म्युज़िक की धीमी धीमी तरंग माहौल को खुशनुमां बना रही थी...मै उस वक्त उन ख़्यालों की दुनिया से बाहर आया जब किसी अंजाने गर्म हाथों का लम्स मेरे ठंडे बदन को छू रहा था...शराब के नशे मे मदहोश हसीना कह रही थी ...क्या आप ने उन्हें देखा है...वो मुझे यही लाया करते थे...हाँ उन्हें आदत थी पीने की...जब से मैं उनकी जिंदगी में आई थी उन्हों ने पीना छोड़ दिया था...वो बेसुध होकर बोलो जा रही थी और मैं उसके चेहरे के उतार चढाव देख रहा था ... वो कह रही थी मैं और वो एक साथ यहां आते थे ... वो कुर्सी देख रहे हो ...उस ने इशारे से कोने में पड़ी दो कुर्सियां दिखाइ थी...वो घंटों मेरे चेहरे पर निगाहें जमाए इस शोर-व-गुल से दूर मुझ में समाने की कोशिश करते थे... मैं ने जब से उसे देखा था मेरी निगाहें उस की झील सी आंखों से हटने का नाम नहीं ले रही थीं...इसी लिए मैं सुनना नही चाहता था ..कहीं मेरे बीते पल फिर मुझे सताने न लगें मगर मैं मजबूर था ...यहां तो कोइ भी किसी को भी अपना दर्द सुना सकता था ...मैं ने भी सुनना जारी रखा कुछ तो उस दुस्तूर का लिहाज़ रखते हुए तो कुछ उस टूटे हुए दिल को ख़्याल रखते हुए...मैं उस से कैसे कहता कि

ना छेड़ ऐ हमनशीं कैफियते सहबा के अफसाने
मुझे वो दश्ते खुदफरामोशी के चक्कर याद आते हैं


...अब वो क्या बोल रही थी मुझे कुछ समझ नही आ रहा था...हां उस की हर बात मुझे अपने बीते पलों में ढ़केल रही थी...मैं ने जब से उसे देखा था मेरी निगाहें उस की झील सी आंखों से हटने का नाम नहीं ले रही थीं...मै बार बार उन्हें देख कर अपनी दोस्त को याद कर रहा था...उस के आंखों में जो आंसुओं के मोती झलक रहे थे उसी तरह उस की आंखों में भी होते थे ... हाँ ये लाल ड़ोरे जो इस की दर्द भरी आंखों में अंगडाई ले रहे है उस की आंखों में भी मचलते थे...यही गहराई थी जिस में मैं कई बार ड़ूबा था......आज बहुत दिनों बाद उस का ख्याल आया था दिमाग़ में...वह जाते जाते मुझ से कह गई थी कि मैं उसे याद नहीं करूंगा...लेकिन आज बरसों से निभाया जा रहा वादा टूट चुका था...मैं ने बहुत कोसा था दिल को कि जिसे मैं ने चाहा था मैं उसी के एक वादे की हिफाज़त ना कर सका...शायद इसी वजह से सालों से बनावटी हंसी की आदी आंखे दिल खोल कर रोई थीं...उन आंखों ने फिर मुझे पिला दिया था... और मेरे कदम लडखडा रहे थे...होश बाकी ना था ....और...नाईट क्लब बंद होने के साथ दोस्तो के कंधों का सहारा लेकर रात की सियाही में तन्हा सडक को रौंद रहे थे....

15 comments:

ओम आर्य said...

हाँ ये लाल ड़ोरे जो इस की दर्द भरी आंखों में अंगडाई ले रहे है उस की आंखों में भी मचलते थे...यही गहराई थी जिस में मैं कई बार ड़ूबा था..

bahut hi sundar rachana.....dil me gahare uatari..atisundar

Sonalika said...

kamal hai tumari kalam ki kalpnashilta. bahut sunder rachana.

निर्मला कपिला said...

बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है प्रवाहमय कमाल है अपकी कलमाशीर्वाद्

Anonymous said...

bahut khoob rachna hai...apki kalam me jaado hai

M VERMA said...

"उन आंखों ने फिर मुझे पिला दिया था... और मेरे कदम लडखडा रहे थे...होश बाकी ना था"
== बहुत सुन्दर वाह वाह
इतनी प्रवाहमय रचना

दिगम्बर नासवा said...

"उन आंखों ने फिर मुझे पिला दिया था... और मेरे कदम लडखडा रहे थे..

HUM......AKSAR KABHI KABHI DIL KA KOI PURAANA TAANKA UDHAR JAATA HAI..... FIR BAS LADKHADA JATA HAI INSAAN... AAPKI POST LAJAWAAB HAI....SUNDAR JHAROKHA HAI

श्रद्धा जैन said...

"उन आंखों ने फिर मुझे पिला दिया था... और मेरे कदम लडखडा रहे थे..

bahut ghari kalam aur usko likhne ka andaaz

bahut bandaaha hua rakhta hai

vikas vashisth said...

bhut gahrai se sochte ho utni hi gahrai se uker bhi dete ho dua hai ye gahrai bani rahe

neha said...

bahut acchh likha aapne...aapka dard samne aa gaya....badhai..

kshama said...

"Na chhed aiye hamnasheen.." dard kee siyahee aur khayalaat kee qalam..!Waah!

डिम्पल मल्होत्रा said...

boht parwah me likhi rachna,pad ke apka dard mahsoos hua,aap vada nahi nibha paye...khoobsurat emotional post...

SACCHAI said...

dil nase me chur ho gaya ..na khyal raha ...na hos raha ...bahut accha khub likha hai ....zakaas!

-- eksacchai {AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Gaurav said...

इन हाथों के लम्स ने कभी जगाये रखा कभी मदहोश बनाये रखा............ये सच है की वो हम से जुदा हो गए पर, उनकी याद को हमने सीने से लगाए रखा......अब आख़िर इसी जज्बे ने आखिरी वार कर दिया.......फुरकत के तीरों के झेलते रहे सालों, पर आज दिल के पार कर दिया...........


लाजवाब है...........................तारीफ़ के लायक लफ्जों की कभी कभी कमी पड़ जाती है................ऐसे में दोस्त माफ़ी के काबिल होते है.................

मस्तानों का महक़मा said...

भाव बहते हुए लगते है, नज़र मे चीज़ो की परख है।
पड़कर अच्छा लगा।

Unknown said...

speehless....