हुस्न ऐसा कि सच कहें गालिब
जिंदगी अपनी वार देते तुम
फिर अचानक से उसकी याद आई
लफ्ज़ तस्वीर में बदलने लगे
लोग पढ़ते रहे सलात व दुआ
हम तसव्वुर मे उनकी खोने लगे
Friday 24 June 2011
Monday 10 January 2011
ये पल...
याद आएंगे ये चुलबुले से कुछ पल
दुनिया के झमेलों से थक हार कर
जब उठाएंगे पुरानी डायरी
सच बहुत याद आएंगे ये पल
सुबह बहुत देर से होती थी अपनी
चांद बहुत देर तक रौशन रहता था अपने साथ
पहले सूरज से अपनी दोस्ती थी
मगर अब बड़े हो गए थे हम
चांद के साथ अपनी अच्छी बनने लगी थी
सच बहुत याद आएंगे ये पल
जब थक हार कर लौटेंगे घर
ज़िंदगी के झमेलों से उक्ता कर
जब पुराना बक्सा खोलेंगे
लबों पर मुस्कुराहट और आंखों में आंसू
रेंगने लगेंगे खुद ही
बिछडे परिंदों की याद में
डाल-डाल, रात-रात साथ-साथ
उडते रहते थे जिनके संग
सच बहुत याद आएंगे ये पल
जब थक हार कर उठाएंगे पुराना अल्बम
मगर तब
जिंदगी की ज़रूरतें उसे देखने की फुर्सत नहीं देंगी!!!
Tuesday 4 January 2011
एहसास
सोच रहा हूं
ये साल का नया सूरज है
या फिर तुमने शबनम से अपना चेहरा धोया है
ये चांद की ठंड़ी रौशनी है
या फिर तुम्हारी आंखें मेरे चेहरे पर बिछी हैं
ये मुरादों का कोई तारा टूटा है
या फिर तुम धीरे से मुसकुराई हो
ये हवा के झोंकों से होने वाली सरसराहट है
या फिर तुम चुपके से मेरे कानों में सरगोशी कर रही हो
ये आसमान के दामन में चमकता हुआ चंदा है
या फिर तुम्हारा टूटा हुआ कंगन आसमान ने अपने आंचल में छुपा लिया है
ये बारिश के पहले होने वाली बदली है
या फिर तुनने अपने ज़ुल्फों को हवा में लहराया है
ये आंसू मेरे गालों पर रेंग रहे हैं
या फिर तुम्हारी सांसों की गर्मी मेरे रूख़्सारों पर महसूस हो रही है
सोचता हूं
तुम होती तो बतला देतीं
अकेले कितना मुश्किल है सब कुछ समझ पाना …!!!!
Saturday 1 January 2011
नए साल पर
नए साल पर जलाई गईं
हज़ारों फुलझडियां
दाग़े गए
हज़ारों पठाके
नशे में धुत हो कर
नाचा पूरा जहान
मगर
चौराहे के उस सूखे पीपल के नीचे
वो बूढ़ा आज रात भी
अपनी मरी हुई लाग़र सांसों से
बुझती आग को जलाने की कोशिश में
ठिठुर ठिठुर का रात गुज़ार दिया
क्यों नहीं सुनाई दे रही हैं दुनिया को
उसकी मरी हुई खांसने की धमक!!!!