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Sunday 22 November 2009

तुम ईद मना लो तनहा तनहा हम रो लेंगे तनहा ही



मेरी पलकों पर जो सपने थे पल भर में चकनाचूर हुए
क्या ख़बर सुनाई ज़ालिम ने और हम ग़म से रनजूर हुए
क्या सोचा था इस बार अगर हम उनसे मिलने जाएंगे
हर वक्त हमारे साथ रहें कुछ ऐसे लम्हे लाएंगे
पर ख़ता हमारी थी शायद जो सपना पूरा हो सका
क्या ख़बर सुनाई ज़ालिम ने हर सपना अपना टूटा था
मां बाप की हसरत रोती रही हर आस हमारी टूट गई
उम्मीद की इक हल्की सी किरन बस सामने मेरे बैठी थी
दामन पे हमारे दाग़ ना था फिर ऐसी सज़ा क्यों हम को मिली
हर वक्त यही दिल सोचा किया आंखें भी उसी के साथ रहीं
उस वादे का क्या करते हम जो उनसे लिया था पहले ही
उन नैनों को कैसे रूलाते हम जो खुशियां भूली बैठी थीं
कैसे ये कहते आएंगे ना हम इस बार रहेंगे तनहा ही
तुम ईद मना लो तनहा तनहा हम रो लेंगे तनहा ही

Friday 20 November 2009

दम तोड़ती संस्कृति


भारत में महान हस्तियों की पूजा और उनकी महानता के गुणगान करने का रिवाज बहुत पहले से चला आ रहा है और इस में किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी जाती है शायद इसी वजह से किसी ने हिंदुस्तान को मुर्दा परस्तों का देश भी कहा था क्योंकि ये यहां किसी भी बड़ी हस्ती के मरने के बाद उसकी कदर में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी जाती है। उसके जीते जी चाहे उसके सर पर कोई साईबान ना रहा हो मगर मरने के बाद समाधी के रूप में उसे एक बहुत बड़ा घर दिया जाता। आप को ग़ालिब याद होंगे जिन्होंने उर्दू शायरी को एक नया अंदाज़ दिया था, ज़िन्दगी में इस महान आदमी के पास किराए का तंग सा मकान था और वह ये कहता फिरता था कि हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे मगर उसकी मौत के बाद इतना बड़ा हिस्सा उसके नाम कर दिया गया जिसका सपना भी उन्होंने नहीं देखा होगा।
लेकिन शायद ये रस्म धीरे धीरे अपने अंजाम को पहुंच रही है और अब किसी के पास इनकी चीज़ों पर तवज्जुह देने की ज़रूरत नहीं महसूस हो रही है। शायद इसी वजह से तो आज फ़िराक़ गोरोखपुरी के घर का ये हाल हो रहा है। बनवारपूर गाँव मे28 अगस्त सन 1896 को जन्म लेने वाले रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने क़लम से भारत की आज़ादी के लिए जो कोशिशें कीं उससे कोई भी शख़्स ने इन्कार नहीं कर सकता है और शायद उनके इसी यौगदान के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुस्कार से सम्मानित किया गया था। मगर शायद अब इस यौगदान के धुंधले नक्श भी लोगों के ज़ेहन पर बाक़ी नहीं हैं।
ख़बर तो ये है कि फ़िराक़ ने जिस शहर का नाम रौशन किया आज वही शहर उन्हें भुला बैठा है और वह घर जहां से शायरी का ये सफर शुरू आज वह दूसरे के कब्ज़े में जाकर अपना वजूद खो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार फिराक गोरखपुरी का लक्ष्मीनिवास को पुर्वांचल का आनंद निवास कहा जाता था मगर आज इस इतिसातिक निवास पर अबैध कब्जा है।
ये देखने की बात है कि जहां देश पर जान देने वालों को इंण्डिया गेट पर हमेशा ज़िन्दा रखने की कोशिश की जाती है वहीं अपने क़लम की लहू के हर बूंद को निचोड़ कर आज़ादी की सुबह लाने के लिए कोशिश करने वालों का ये हशर हो रहा है।
मगर शायद अब दुनिया के अंदाज़ बदल चुके हैं तो लोगों को याद करने का भी नया तरीक़ा ईजाद किया जाना ज़रूरी था। हां इसीलिए तो उनके घर की जहां एक विरासत के तौर पर हिफ़ाज़त करनी चाहिए वहीं आज उसे हडपने के लिए सभी मुंह फैलाए हुए हैं।
मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गऐ हों तुझे ऐसा भी नहीं
कभी फिराक ने इन्हीं शब्दों से अपने महबूब से कलाम किया था और आज उनको लोग यही कहकर पुकार रहे हैं कि ऐ फ़िराक़ हमने तुम्हें बहुत दिनों से याद नहीं किया है मगर हम तुम्हें भूले नहीं हैं, हमें तुम्हारी शायरी तो याद नहीं मगर तुम्हारा घर हमें तुम्हारी याद दिलाता रहता है।
यहां सवाल ये उठता है कि क्या ऐसी महान हस्तियों कि वरासत के साथ ऐसा होना चाहिए। शायद नहीं। मगर ऐसा हो रहा है और इसका तमाशा सभी देख रहे हैं। ये देखते हुए ये कहना ज़्यादा मुश्किल नहीं है कि भारत दूसरी चीज़ों की तरह से अपनी ये पहचान भी खोता जा रहा है। सरकार के लिए इस बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है कि इन हस्तियों के वरासत का बुरा हाल ना किया जाए वरना एक दिन ऐसा आएगा जब यहां की संस्कृति खुद से शर्म करेगी और ये कहती फिरेगी कि मैं तो ऐसी ना थी, मुझे ये पहचान क्यों दे दी गई?

Sunday 15 November 2009

एक तमन्ना-एक एहसास

किसी को प्यार करूं और किसी के साथ रहूं
किसी को अपना बना लूं किसी का नाम बनूं
किसी की खुश्बू चुरा लूं किसी को महकाऊं
किसी की आंख में काजल की तरह बस जाऊं
किसी के लब से मुहब्बत का जाम पी करके
किसे की नरम सी बाहूं में जा के सो जाऊं
किसी की शौख़ अदा दिल को मेरे बहकाए
किसी को चाह लूं और वह भी मेरा हो जाए
किसी की बातों में हर पल मेरा ही ज़िक्र रहे
किसी की याद का जुगनू हमेशा साथ रहे
किसी के हुस्न को तस्वीर करके देखा करूं
किसी की ज़ुल्फ के साए में जी के मस्त रहूं
किसी का नाम मेरे दिल को हर पल धडकाए
किसी का ग़म मेरी पलकों पे आंसू धर जाए
किसी के सांसों की गर्मी बदन जलाती रहे
किसी के साथ जो हूं रात मुस्कुराती रहे
किसी के साथ चलूं रास्ते भी साथ चलें
कहीं अकेला चलूं मंज़िलें भी दूर लगें
किसी से दूर हूं धडकनों को कल ना हो
किसे के साथ हूं मुश्किलों मे ड़र ना हो
किसी के हाथ में हो हाथ दूर तक जाऊं
किसी का साथ जो छूटे तो शायद मर जाऊं
किसी की मांग में सिंदूर मेरे नाम का हो
किसी की जान मैं हूं कोई मेरी जान रहे
दुआ करो कि ये रिश्ता कहीं से बन जाए
ख़ुदा करे कि मुझे ऐसा कोई मिल जाए

Wednesday 11 November 2009

ख़ून में सने सपने

हर तरफ शोर मचा था, कहीं चीखें थीं तो कहीं रोना, एक आफत एक तूफान आ गया था ज़िन्दगी की गली में, तलवारें मियान से बाहर थीं, किरपान निकले थे, तिरशूल लहरा रहे थे, मंदिर की घंटियां, मस्जिद से उठने वाली सदाएं, गुरूदवारे की आवाज़ें सब तलवारों, किरपानों और तिर्शूलों के टकराने की संगीत में कहीं गुम हो गए थे, मुरदा लाशों पर ज़िन्दा लाशें दौड़ रही थीं, उड़ती धूल को लहू की बूंदों से शान्त किया जा रहा था, धरती पर पहला क़दम रखने वाले मुस्तकबिल की सांसें घुट रहीं थीं, उसे मां की छातियों से दूर फैंक दिया गया था, कोई उस मासूम को उठाने की कोशिश कर रहा था मगर पिंडलियों पर होने वाले वार ने उसे निढ़ाल कर दिया, नन्हा बच्चा तड़पता हुआ बेबस मां के पास गिरता है, उस का एक हाथ उसकी नंगी छातियों था मगर वह अपनी इज़्जत अपनी बाहों में छुपा रही थी, दूध की प्यास से सूखे होंटों पर लहू निचोड़ा जा रहा था और इंसानियत ख़ून के आंसू रो रही थी...

Sunday 8 November 2009

ख़्वाबों की शहज़ादी

ख़्वाब और जवानी एक दूसरे से जुडी हुई चीज़ें हैं। बच्पन में ख़ूबसूरत परियों की कहानियां सुन कर सोना जितना अच्छा लगता है जवानी में हसीनों की दास्तान उतना ही मज़ा देती है। एक उम्र के बाद सपनें देखना और उनकी ताबीरें सोचना दिमाग को बहुत पसंद आता है, खास कर नींद की आगोश में जाने से पहले किसी से मिलन की चाहत ज़ोर पकड़ लेती है और फिर चांद के साथ रतजगे का सिलसिला शुरू हो जाता है। लगन और चाहत कामयाब होती है फिर किसी ना किसी चांद का दीदार हो ही जाता है।
महबूब को चांद बतलाने की रस्म बहुत पुरानी है मगर जब भी ख़्वाबों में किसी हसीना से मुलाकात होती है तो लोग उसे चांद सा ही बतलाते हैं। इन दिनों किसी की दुआएं काम आ रहीं हैं या फिर बद्दुआवों का असर था जो हर रात नींद आने से पहले ही पलकों पर कोई अपने नरम हाथ रख कर बैठ जाता है, शायद किसी अपने की (बद) दुआ का असर था, मगर कुछ भी हो इन ख़्वाबों ने मुझे कुछ कहने पर मजबूर कर दिया था, मुझे ड़र तो लग रहा कि उसकी ताबीर कहीं ग़लत ना हो जाए इसलिए किसी से कहने से दिल डरता था मगर क्या करें कुछ लोगों से रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है कि मजबूरन कहना पड़ जाता है। मैं ने भी वही किया और दिल पर जब्र करते हुऐ कह दिया, वह भी ऐसे निकले की हर बात पूछने लगे। वह दिखने में कैसी थी, उसकी आंखें कैसी थीं, उसकी ज़ुल्फों का क्या हाल था, उसके लब के जलवे भी बता दो, उसके जिस्म की तराश कैसी थी और कई तरह के सवालों की बौछार कर दी। महबूब की तारीफ करना किस को पसंद नहीं होता। मेरे लिए तो अभी ख़्वाबों में आने वाली शहज़ादी ही मेरी महबूबा थी, वह ख़्वाब ही थी पर मुझे उसकी बातें करते हुए अच्छा लग रहा था जैसे मैं उसे देख रहां हूं और खुद उसी से उसकी तारीफें कर रहा हूं मैं एक एक करके उसके बारे में बताने लगा। उसका दिलकश हुस्न मैं कभी नहीं भूल सकता। गुलाबी चेहरा इस तरह खिला हुआ था जैसे फूल की कली हो, मैं सपने में ही उससे ये पूछने पर मजबूर था कि क्या तुम कोई जादू हो, खुश्बू हो या फिर कोई अपसरा हो, आंखें तो ऐसी थीं जैसे मयकदा(शराबख़ना) हो, उन नज़रों पर नज़र पड़ते ही मदहोशी का आलम तारी हो गया था मगर ख़्वाबों में ही मैं उसकी आंखों की सारी शराब पी लेने की नाकाम कोशिश कर रहा था, उनके झुकने, उठने और झुककर उठने की हर अदा जानलेवा थी, उसके लबों की सुर्खी ऐसी थी जैसे गुलाब की पंखुड़ी हो, पूरा चेहरा किसी कंवल, या कली की तरह शादाब था या फिर महताब की तरह रौशन था। ज़ुल्फों ने तो जान ही ले ली थी, सियाह रात जैसी ज़ुल्फें कोई काली बला लग रहीं थीं, उनके बिखरने और सिमटने पर ही दुनिया के हालात बदल जाते थे, जिस्म तर्शा हुआ था, दिलकश इतना की ऐतबार ही नहीं हो रहा था, कभी उसके होने पर यकीन आजाता तो कभी एक गुमान होने का शुब्हा हो जाता, आंखें मल मल के देखता था ताकि ख़्वाब होने का गुमान ना रह जाए (ये सब सपने की हालत में था), कितना बताता, उस परी सूरत की दास्तान तो बहुत लंबी थी। तारीफें थी कि ख़त्म ही नहीं हो रही थीं किसी और पोस्ट में उस हसीना पर चर्चा ज़रूर करूंगा और उस वक्त उसकी मुकम्मल तसवीर खींचने की पूरी कोशिश होगी। अभी तो यही ख़्याल सता रहा है कि क्या ये सपना सच होगा या फिर ...

Monday 2 November 2009

शाहरूख़ - सपनों के सफ़र का कामयाब मुसाफिर


एक शख़्स जिस का चेहरा हज़ारों के ख़्वाबों की तस्वीर, एक ऐसा अदाकार जिस का ज़माना दीवाना, एक ऐसा इंसान जिसके रोने का अंदाज़ लाखों हसीनाओं की नींदें उड़ा दे, एक ऐसा दीवाना जिसकी चाहत हर किसी का सपना, उसकी हर अदा, हर अंदाज़, हर नख़रा और हर अहसास सभी के तंहाईयों का साथी है।

आंखों में हजारों सपने, चेहरे पर लहराता हौसला, मंजिल तक पहुंचने का जोश और कड़ी मेहनतों के बल बूते पर दुनिया में अपना नाम पैदा करने का ख़्वाब लिए जब शाहरूख खान ने मुम्बई के माया नगरी में क़दम रखा तो शायद उस ने यह कभी ना सोचा होगा की वह देखते देखते बॉलीवुड का बादशाह बन कर किंग खान के नाम से जाना जाने लगेगा और दुनिया उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब होगी। मगर शायद किसमत शाहरूख पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी या फिर ये उस अदाकार की सलाहियतों का कमाल था कि कामियाबी हर मोड़ पर उसका रास्ता देखती नज़र आई। कुछ भी हो मगर शाहरूख के सुहाने फिल्मी सफर ने जहां उनके चाहने वालों की भीड़ पैदा कर दी वहीं उन के सपनों को भी बहुत हद तक सच साबित कर दिया।

दीवाना के राजा सहाय से लेकर बिल्लू का साहिर खान बनने में शाहरूख की अपनी उम्र के तकरीबन 17 साल लग गए। इस बीच शाहरूख चमतकार करते हुऐ राजू बन गया जेन्टिल मैन से दिल आशना है के करन के रूप में छाए रहे। माया मेमसाब और किंग अंकल के रूप में दिखते दिखते हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं की गुहार लगा कर कब बाज़ीगर बन गया अंदाज़ा ही ना हो सका लेकिन शाहरूख अपने कैरियर की बलंदियों तक पहुंचने में जरूर कामियाब होगए। बाज़ीगर बनकर फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड हासिल करने वाले विकी मल्होत्रा ने जब डर में राहुल मेहरा बन कर अपनी इमेज बदली तो फिर पूरी फिल्म में कि...किरन के लिए भागते रहने वाले शाहरूख को बेस्ट विलेन के अवॉर्ड के लिए चुन लिया गया। ये उनकी बेपनाह सलाहियतों का ही जौहर था कि इश्क आशिकी के रंगों और प्यार मोहब्बत की दास्तोनों को अपनी अदा देने वाला शाहरूख जब एक विलेन के रूप में नज़र आया तो लोगों ने उसे सराहने में कोई कमी ना छोड़ी।


शाहरूख़ की जिंदगी कभी हां कभी ना के अंजाम से गुज़री और फिर क्या था करन अर्जुन का ज़माना दीवाना होगया। गुड्डू ओह डार्लिंग कहते कहते आशिकों को समझा गया कि दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे।

राम जाने इंग्लिश बाबू देसी मेम की चाहत में ऐसा फंसा की आर्मी ने उसे दुशमन दुनिया का बदरू बना दिया। कोयला में मिली परेशानियों ने यसबॉस का रास्ता दिखाया और शाहरूख अर्जुन सागर बन कर परदेस को चला गया। गंगा ने जब दिल तो पागल है का फलसफा समझाया तो शाहरूख़ डुबलीकेट दिलसे कुछ कुछ होता है कहता हुआ बॉलीवुड़ का बादशाह बन गया। फिर भी दिल है हिंदुस्तानी के जोश ने हर दिल जो प्यार करेगा के राहुल को मुहब्बतें के राज आरयन के रूप में शाहरूख़ को बिग बी के सामने खड़ा कर दिया। वन 2 का 4 की गिनती सीखते सीखते अशोका कभी खुशी कभी गम की मार झेलते हुए हम तुम्हारे हैं सनम का ऐलान करते हुए देवदास बन गया।

चलते चलते कल हो न हो भी सामने आगई। मैं हूं ना ने वीर-ज़ारा के रिश्तों को स्वदेश में मशहूर करदिया। कभी अलविदा न कहना की पहेली बुझाने वाला डॉन चक दे इण्डिया के नगमें सुना गया। ओम शांति ओम का पाठ करने वाले शाहरूख की दुआ कबूल हुई और फिर क्या था रब ने बना दी जोड़ी। मगर पिक्चर तो अभी बाक़ी है मेरे दोस्त बिल्लू का साहिर इतनी जलदी दम लेना वाला नहीं उसे तो दुनिया को ये भी बताना है कि माई नेम इज़ ख़ान, और ख़ान मतलब शाहरुख़ खान जिसका आज जन्म दिवस है।

अदाकारी के मैदान में नए नए तरीके इजाद करने वाला शाहरूख आज के अदाकारों का रोल माडल है। उसने सिर्फ अदाकारी ही नही की बल्कि अपुन बोला तू मेरी लैला वो बोली फेंकता है साला जैसे हिट गानों को अपनी आवाज़ भी दी। फिल्मों को प्रोड्यूस भी किया मगर जब ख़ून के हर क़तरे में अदाकारी का रंग भरा हो तो कोई और चीज़ कैसे उस पर हावी हो सकती है। यही हुआ शाहरूख के साथ भी जितनी कामयाबी और जितना नाम उनकी अदाकारी ने उन्हें दिया और किसी चीज़ से उतना हासिल ना हो सका। खैर इतना तो सच है कि जो भी चाहूं वो मैं पाऊं ज़िंदगी में जीत जाऊं, चाँद तारे तोड़ लाऊं सारी दुनिया पे मैं छाऊं, यार तू भी सुन ज़रा आरज़ू मेरी है क्या, मान जा ए ख़ुदा इतनी है दुआ मैं बन जाऊं सबसे बड़ा, मेरे पीछे मेरे आगे हाथ जोड़ें दुनिया वाले, शान से रहूं सदा मुझ पर लोग हों फ़िदा बस इतना सा ख्वाब है ...की शाहरूख़ की दुआ ख़ुदा ने कबूल करली है।