कल जब शाम रात के लुबादे में छुपने को बेकरार थी , सलेटी मायल सुर्ख आसमान के किनारे बहुत नीचे ढलान पर लुढ़कता आफताब बुझते दिए की तरह ज़ोर लगा कर रौशन होने की कोशिश कर रहा था , आसमान पर सियाही अपना पैर पसार रही थी ...निगाह बार बार उन पक्दंदिओं की तरफ़ उठती चली जा रही थी जहाँ से होकर गुज़रा था ... बरसात आने वाली थी , काले बादलों ने पूरा आसमान धक् लिया था ...वो कह कर गया था तुम्हारे लिए इक तुहफा लेकर आ रहा हूँ ...हाँ सिर्फ़ तुम्हारे लिए ... तुम यही रुकना ...मैं बस गया और आया ...दूर जाते हुए उस ने कहा था ...रुकना ..न ..न यहीं पर ,साथ में नहाये गे ...रुकना ...न ...
न... देर तक ये आवाज़ शाम के सन्नाटों को चीरती रही थी ... बारिश हुई ...अकेले भीगा ...वो आया नही ... कई बरस गुज़र गए ... ऐसे मंज़र तो बहुत आए पर ...हर बार निगाहें दूर तक जाने वाले के लौटने को देखती रही मगर कोई फायदा न हुआ आज शाम भी उसी इंतज़ार में कट गई ..वो ना आया ...
1 comments:
sabse pahle to blog ke layout ki tarif
BAHUT KHOOBSURAT
YE NEELA RANG BAHUT SUNDER LAG RAHA HAI
ab rahi baat tumari rachana ki to tumhari kalam me jadu aata ja raha hai
behad khoobsurat
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