Pages

Wednesday 3 June 2009

...पूरे बदन पर आबले पड़ चुके थे

रात फ़िर नीद आंखों से बहुत दूर

आसमान पर बिखरे लाखों तारों के बीच

इकलौता चाँद देखते ही

मुझे लगा जैसे कोई मुझे आवाज़ दे रहा है

मैं ख्यालों में

कहीं अनदेखे वादियूं की तरफ़

तुम्हें ढूँढने निकल पड़ा

शांत हवा ने गर्मी और बढ़ा दी थी

तम्प्रेचर बहुत ज़्यादा हो गया था

मगर क्या करता

तुम्हारा ख्याल मुझे रुकने नही दे रहा था

तुम कैसी होगी

तुम्हारे यहाँ

तापमान क्या होगा

तुम भी मेरी तरह तारे गिनती होगी

तुम्हारे बिस्तर पर भी

बेक़रारी की करवटें बे शुमार

शिकन बना दी होंगी

सोचों के इसी सेहरा में चक्कर काटते काटते

नीद ने कब मुझे

अपनी बाहूं में भर लिया

कुछ पता ही न चला

मगर

जब सुबह आँख खुली

नहाने के लिए कपड़े बदले

तो देखा

मेरे पूरे बदन पर आबले पड़ चुके थे


1 comments:

Sonalika said...

तापमान क्या होगा
garmi ka prabhav hai koi chinta ki baat nahi hai