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Saturday 30 May 2009

परवीन शाकिर : निसाई जज़्बात की तर्जुमान शायरा


उर्दू अदब की तारीख में बेशुमार चेहरों ने अपनी पहचान बनाई । इस की दिलकशी , चाशनी और जज्बियत ने बहुत सारे लोगों को मसहूर किया । अल्लामा इकबाल से ले कर अहमद फ़राज़ जैसे शायरों तक सभों ने उर्दू ज़बान को फरोग देने की कोशिश की और उर्दू ने उन को वो पहचान दी कि आज भी उन का नाम इज्ज़त वो एहतेराम के साथ लिया जाता है। मर्दों में जहाँ इकबाल , ग़ालिब , मीर ,फिराक और दीगर लोगों ने जहाँ नाम कमाया वहीं औरतों में से परवीन शाकिर ने बेपनाह मकबूलियत हासिल कि। चोटी सी उमर पाने वाली परवीन शाकिर अपने जुदा उस्लूब और अंदाज़ कि वजह से लोगों में आज भी जिंदा हैं। आज भी उन कि शायरी और उन कि नज्मों व ग़ज़लों ने लोगों के जहन वो दिल पर बसेरा डाल रखा है। परवीन शाकिर का आबाई वतन चंदन पट्टी, लहरिया सराय दरभंगा है। उन के पिता साकिब हुसैन शाकिर एक शायर थे। हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद जब मुल्‍क तकसीम हुआ तो वो भी पाकिस्‍तान हिजरात कर गए। परवीन शाकिर का जन्‍म पाकिस्‍तान के मशहूर शहर कराची में २४ नवम्‍बर १९५४ में हुआ । ज़बान और अदम में खास लगाव बचपन से था, तालीमी मैदान में अनहूत ने इंगलिश लिटरेचर और ज़बानदानी में स्‍नातक किया और बाद में उन्‍ही मजामीन में कराची यूनिवर्सिटी से एम ए की डिग्री भी हासिल की। परवीन शाकिर ने पी एच दी की डिग्री भी हासिल की और बेंक एडमिनिस्ट्रेशन में भी एक मास्टर डिग्री हासलि की। परवीन शाकिर उस्ताद की हैसियत से दरस वो तदरीस के शोबे से वाबस्ता रहीं और फिर सरकारी मुलाजमत इख्तियार कर ली। सरकारी मुलाजमत इख्तियार करने से पहले ९ साल तक तदरीस के शोबे से मुंसलिक रहीं और १९८६ में कस्टम डिपार्टमेंट , सी बी आर इस्लामाबाद में सेक्रेट्री दोयम के तौर पर अपनी खिदमात अंजाम देने लगीं । १९९० में तेरेंती कालेज से तालीम हासिल की और १९९१ में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पुब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर की डिग्री हासिल की । परवीन की शादी उन के खाला जाद भाई डाक्टर नसीर अली से हुई लेकिन नमवाफिक हालात के सबब उन दोनों के दरमियान ये रिश्ता ज़्यादा देर तक कायम न रह सका और तलाक़ के ज़रिये जुदाई हो गई।
उर्दू की खवातीन शायरात में जहाँ किश्वर नाहिद और फहमीदा रियाज़ ने बेपनाह मकबूलियत हासिल की वहीं परवीन शाकिर ने भी अपने फन का जौहर दिखा कर लोगों के दिलों पर राज करने लगीं । परवीन शाकिर ने अपनी शायरी का सफर तालिब इल्मी के दौरान ही शुरू कर दिया था । पहले वो इर्काफा अज़ीज़ से मशवरा सुखन लेती थीं बाद में अहमद नदीम कासमी से इस्लाहात और मशवरे लेने लगीं । वो अहमद नदीम कासमी को अपना उस्ताद मानती थीं और उन्हें अम्मू के नाम से याद करती थीं। उन की पहली नज़म पाकिस्तान के मशहूर रोजनामा जंग में शाये हुई और उर्दू दुनिया में हलचल पैदा कर दी । उर्दू की मुनफ़रिद लब वो लहजे की शयरा होने की वजह से बहुत ही कम अरसे में उन्हें वो शोहरत हासिल हुई जो बहुत कम लोगों को नसीब होती है । उन की शायरी का असल मौजू मुहब्बत और औरत है। शायद ये पहली खातून शायर हैं जिन्हों ने ख़ुद औरत को अपनी शायरी का मौजू बनाया है। अपनी शायरी में एक ऐसी औरत को पेश किया है जो महबूब से जुदाई के गम सहती है और उस दौरान जो कैफियत होती है उसे परवीन शाकिर ने बहुत ही सुनहरे अंदाज़ में बयां किया है । उर्दू की खवातीन शायरात में परवीन शाकिर को जो मकाम मिला उस की वजह शायद ये भी थी की उन्हों ने औरतों के मख्फी जज़्बात और दर्द को बे बाकि और पूरे इन्साफ के साथ बयान किया। ग़ज़ल की दुनिया में परवीन शाकिर एक अहद आफरीन शायरा बन कर उभरीं थीं । उन्हों ने अपनी निस्वानी आवाज़ और चौंका देने वाले उस्लूब से बिन्ते हव्वा की बेचार्गी और उस की बेबसी को पूरे हौसले के साथ बयान किया।
ये हकीकत है की परवीन शाकिर उर्दू अदब और खास तौर से ग़ज़ल और नज़म की दुनिया में एक अन मिट नुकूश छोड़ने वाला नाम बन कर उभरीं मगर वो एक बेहतरीन बीवी के रूप में कामयाब न हो सकीं । इज्दावाजी ज़िन्दगी की नाखुशी और हालात के अदम -ए-तवाजुन ने उन्हें बहुत सारे तजरुबात बहम पहुंचाए । यही वजह है की परवीन शाकिर की तमाम घज्लोम में निस्वनि़अत की वो चीख छुपी है जो एक गैर मुतमइन रूह से उभरी है। कुछ अशआर मुलाहजा हों
कैसे कह दूँ की मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच्च है मगर बात है रुसवाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात भली है मेरे हरजाई की
तमाम लोग अकेले थे राहबर ही न था
बिछड़ने वालों में एक मेरा हमसफ़र ही न था
तुम्हारे शेहर की हर छाओं मेहरबान थी मगर
जहाँ पे धुप कड़ी थी वहां शजर ही न था
अकेले पन , तन्हाई और हिज्र के लम्हात और उस के ग़म को उन्हों ने बहुत ही अच्छे अंदाज़ में बयान किया है एक जगह कहती हैं
रफाकतों का मेरी उस को ध्यान कितना था
ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया
अक़ब में गहरा समुन्दर है सामने जंगल
किस इन्तहा पे मेरा मेहरबान छोड़ गया

महबूब के साथ गुजारे हुए लम्हात और उस वक़्त होने वाले अहसासात और फिर दूरी के हलके दर्द को बयान करने का अंदाज़ बहुत नफीस है। कहती हैं
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानां
धुप आंखों तक आँखों तक आ पहुँची , रात गुज़र गई जानां
लोग न जाने किन रातो की मुरादें माँगा करते है
अपनी रात तो वो जो तेरे साथ गुज़र गई जानां

जुदाई के हालात में करवट बदल बदल कर काटी गई रातों को बयां करते हुए कहती है
चाँद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह

परवीन शाकिर ने बलंद ख़यालात को बहुत ही अनोखे उस्लूब में बयां किया । कुछ अशआर मुलाहजा हों नींद जब ख्‍वाबों से प्‍यारी हो तो फ़िर
कब देखे कौन और ख्‍वाबों करे ताबीर कौन
आज भी मुझे सोते में डसने आएगा
वो जानता है की खिलता है मुझपे जहर का रंग
रेल की सीटी में कैसी हिज्र की ताहमीद थी
उस को रुखसत कर के जब लौट तो अंदाजा हु्आ
जुगनू कोदिन के वक्‍त परखने की जिद करें
बच्‍चे हमारे अहद के चालाक हो गए
लड़किया बैठी है पांव डाल के
रौशनी होने लगी तालाब में
परवीन शाकिर वो शायरा थीं जिन्‍होंने ने अपनी शायरी के ज़रिये निस्वानी जज़्बात के साथ साथ ग़ज़ल में की जाने वाले तमाम मौजुआत पर दस्‍तक दी। औरत के दर्द दिल के साथ बारिश मौसम और तन्‍हाई के अयाम को अपनी शायरी का मरकज बनाया । परवीन शाकिर के अशआर की कई किताबें साए हो चुकी हैं । जिन खुशबू, सदबर्ग,खुद कालमी, इनकार और माह-ऐ- तमाम शामिल हैं ।
खुशबू उनका पहला मजमोए कलाम था जो १९७६ में शाय हुआ, इस से उन को बेपनाह मकबूलियत हासिल हुई और उन्होंने पाकिस्‍तान का आदम जी अवार्ड भी हासिल किया । इस के अलावा उन्हें पाकिस्तान के एक बड़े खिताब बेस्‍ट ऑफ से नवाजा गया। परवीन शाकिर ने गजलियात के साथ साथ नज्‍में भी कही, उन की नज्‍में ग़ज़ल से ज़्यादा आजाद थी । उस में उन्हों ने बहुत नाम कमाया, परवीन शाकिर की नज्‍मों की खास बात ये थी की उस में इंगलिश के अल्‍फाज भी इस्‍तेमाल भी करती थी। लेकिन उस का इस्‍तेमाल उन की नज़म को बदसूरत नही बल्कि और निखार देता था । नज़म के अलावा उन्होंने नसर में भी बहुत काम किया ।नसर में उन की एक तसनीफ गोशे चश्‍म के नाम से शाए हुई ।
उर्दू के चाहने वालों की बद‍किस्‍मती ही थी की जब उर्दू का ये सितारा अपनी उचाइंयों पर फख्र करने के लिए और बलंद हो रहा था तभी इस का बुलावा आ गया । पाकिस्तान सिविल सर्विस में नौकरी करने के दौरान 26 दिसम्‍बर १९९४ को कार्यालय के रास्ते में उन की कर एक गाड़ी से टकरा गई जिस हादसे में वो जान बहक हो गईं और अपने चाहने वालों को रोता छोड़ कर अपने मालिक से जा मिलने, मौत के वक्त उन की उमर ४२ साल थी । इस वक्त सिर्फ़ उन के एक बेटे मुराद अली हैं।

1 comments:

L.Goswami said...

नेट पर एक शेर के लफ़्ज खोजते यहाँ आना हुआ ..कमाल का ब्लॉग है ..आपको बहुत धन्यवाद.