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Friday 29 May 2009

टूट गई जिंदगी की जंजीर

दुनिया में जो भी आया है उसे जाना जरुर है क्‍योंकि जिंदगी ने कभी किसी के साथ वफा नहीं की है। उसकी हर रग में बेवफाई का जहर भरा हुआ है, हंसी खुशी और तरक्‍की के झलकते जाम में ज़हर देकर मौत की आगोश में पहुंचा देना इसकी फितरत है। वाकई जिंदगी तो बेवफा थी एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी रोजाना दुनिया में आने वालों और यहां से रुख़सत होने का सिलसिला लगा हुआ है, ये आने जाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है मगर कुछ ही लोग हैं जो गुमनाम होकर आते हैं लेकिन ऐसा नाम कमाकर इस दुनिया से जाते हैं कि लोग उनकी सिकंदरी पर फख्र करते है। दरहक़ीकत रोते हुए, आते है सब, हंसता हुआ जो जाएगा, वो मुकद्दर, का सिकंदर, जानेमन कहलाएगा इसमें कोई शक नहीं कि हिंदुस्‍तानी सिनेमा के उफक पर एक चेहरा जो वर्षों से राज कर रहा है व़ह नाम अमिताभ बच्‍चन का है अगर यह कहा जाए कि उन्‍हें इतनी मक़बूलियत और इतना बडा़ नाम देने वाले प्रकाश मेहरा हैं तो बेजा न होगा। जी हां अमिताभ बच्‍चन को ज़मीन से उठा कर आसमान पर पहुंचाने में प्रकाश मेहरा का बहुत बडा़ किरदार है। एक आम से अमिताभ को जब प्रकाश मेहरा की जौहरी निगाहों ने देखा तो उन्‍हें एक कुंदन का रूप दे दिया, एक मामूली अमिताभ को एंग्री यंग मैन खिताब तक पहुंचाने वाले प्रकाश मेहरा आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके जाने से फिल्‍मी दुनिया में एक ऐसा खला पैदा हुआ है जो शायद ही कभी पूरा हो। प्रकाश मेहरा मग़रिबी उत्‍तर प्रदेश के बिजनौर शहर में 13 जुलाई 1939 को पैदा हुए। बचपन के अक्‍सर आय्‍याम बरेली में गुजरा। बिजनौर से हाईस्‍कूल तक तालीम हासिल की उसके बाद जिंदगी में कुछ कर गुजरने के अज्‍म ने उन्‍हें देहली पहुंचा दिया। लेकिन मुस्‍तक़बिल की फिक्र, दुनिया में नाम कमाने की चाहत और एक मकबूल इंसान बनने की सोच ने कमसिनी में ही उन्‍हें मायानगरी मुम्‍बई का रुख करने को मजबूर कर दिया।
अक्‍सर ऐसा होता है कि आदमी जो चाहता है वह होता नहीं है, प्रकाश मेहरा भी उन्‍हीं लोगों में से थे। दिल की तमन्‍ना तो यह थी कि हिंदी फिल्‍मों में नगमानिगारी करें, अपने एहसासात और जज्‍बात को अल्‍फाज का रूप देकर लोगों के दिलों पर राज करें मगर कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था। अपनी बेहतरीन और लाजवाब सलाहियतों की वजह से उन्‍होंने एक बेमिसाल हिदायतकार के रुप में अपनी पहचान बनाई। हिंदुस्‍तानी सिनेमा को नई बुलंदिया और सोचने के नए अंदाज दिए। इसके बाद इनकी इस कारकर्दगी ने उन्‍हें हिंदुस्‍तान की फिल्‍मी दुनिया के लिए एक मिसाल और नमूना बना दिया। 1950 में कुछ फिल्‍मसाजों के मआउन के तौर पर अपनी फिल्‍मी जिंदगी की शुरुआत की। उस वक्‍त उन्‍होंने उजाला, जो 1959 में रिलीज हुई और प्रोफेसर, जो 1962 में रिलीज हुई में काम किया। हालात में कुछ तब्‍दीली हुई और 1964 में विश्‍वजीत और वहीदा रहमान को लेकर बनने वाली फिल्‍म के असिस्‍टेंट डाइरेक्‍टर बनकर सामने आए। उसके दो-चार साल बाद तक वह एक आम सी जिंदगी गुजारते रहे। हालात ने करवट बदली और प्रकाश मेहरा खुद फिल्‍मसाजी के मैदान में उतरे। उसके बाद उन्‍होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कामयाबी की वह तारीख रकम की जिस पर फिल्‍मी दुनिया नाज करेगी। 18 साल तक फिल्‍मी दुनिया में कोई खास मकाम हासिल करने के दौरान होने वाले तजुर्बात उनके काम आए। 1968 में उन्‍होंने बबिता और रिषी कपूर को लेकर हसीना मान जाएगी नाम से फिल्‍म बनाई। इस फिल्‍म में जिस तरह के किरदार उन्‍होंने पेश किए उसे लोगों ने काफी सराहा। इस फिल्‍म के दो गाने कभी रात दिन हम दूर थे और बेखुदी में सनम बहुत ज्‍यादा मकबूल और मशहूर हुए। इस फिल्‍म को लेकर प्रकाश मेहरा की जो सराहना की ग उसने उन्‍हें काफी हौसला बख्‍शा। ये एक ऐसी फिल्‍म थी जिसने प्रकाश मेहरा को लोगों के बीच मक़बूल बना दिया उनका हौसला और जज्‍बा उनके काम आया और उनको उनकी मंजिल दिखाई देने लगी। फिल्‍म जंजीर ने प्रकाश मेहरा की मक़बूलियत में इजाफा किया वहीं अमिताभ बच्‍चन को सुपर स्‍टार बनने के ख्‍वाब दिखलाए। अमिताभ की खुशकिस्‍मती थी कि कुछ बडे़ अदाकारों ने इस फिल्‍म को करने से मना कर दिया और इन्‍हें यह मौका मिला। फिर उन्‍होंने इस मौके का अच्‍छा फायदा उठाया और एंग्री यंग मैन के खिताब से नवाजे गए।
फिल्‍म जंजीर बाक्‍स आफिस पर धूम मचा दी। जंजीर की कामयाबी के बाद मेहरा और अमिताभ की जोडी़ ने फिल्‍म शायकीन को कई हिट फिल्‍में दी। जिसमें मुकद्दर का सिंकदर, लावारिश, शराबी, हेराफेरी और नमक हलाल शामिल हैं। इसके अलावा प्रकाश मेहरा ने अपनी नगमानिगारी की ख्‍वाहिश को तर्क नहीं किया बल्कि अपनी पहली पसंद के तौर पर गीत लिखते रहे। उन्‍होंने कई फिल्‍मों में खूब गाने लिखे हैं। अपनी तो जैसे तैसे, थोडी़ ऐसे या वैसे, कट जाएगी, आपका क्‍या होगा जनाबे आली, दिल तो है दिल दिल का एतबार क्‍या कीजै, इंतहा हो गई इंतजार की, जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों, मंजिले अपनी जगह हैं रास्‍ते अपनी जगह जैसे अनोखे अदब व लिताफात और नग्‍मगी से भरपूर गाने प्रकाश मेहरा की कलम से लिखे गए।
प्रकाश मेहरा फिल्‍मी दुनिया का ऐसा नाम जिन्‍होंने जिस मैदान में कदम रखा उसमें कामयाबी हासिल की। हजारों लोगों के दिलों पर राज किया और जब फिल्‍म प्रोड्यूस करने का मौका आया तो जंजीर और दलाल जैसी फिल्‍मों के ज़रिए काफी नाम कमाया। प्रकाश मेहरा ने जिन फिल्‍मों में हिदायतकारी की है उनमें से कुछ ये हैं- और हसीना मना जाएगी( 1968), मेला (1972), समा‍धी (1972), आन बान(1973), जंजीर (9173), हेराफेरा (1978), मुकद्दर का सिकंदर (1978), देशद्रोही (1981), लावारिश (1982), नमक हलाल(1983), शराबी(1984), जादूगर (1992) ये वो पिल्‍में है जो उनकी क़ाबलियत और सलाहियत की दलील हैं।

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