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Saturday 13 June 2009

गैर की बाहें

एक बार आज फ़िर उस रास्ते से गुज़रा
जहाँ हम अक्सर बैठ के देर तक बातें किया करते थे
पानी की लहरें बार-बार पैरो से टकरा रही थी
अब के बार एक शोख लहर आई
साहिल पर खड़ी एक अलबेली लड़की के पाव़ फिसल गए
हमसफर ने बड़ी मुश्किल से संभाला था उसे
फिर दोनों एक दूसरे से लिपट कर बड़ी देर तक
आसमानों में उड़ते रहे
ख्याल की परियों ने तुम्हारी सूरत दिखा दी
शक्ल देखते ही याद आया
यही तो वो जगह थी
जहाँ तुम भी एक बार फिसली थी
और पहली बार मेरे सिवा
किसी गैर की बाहों ने तुम्हें सहारा दिया था
और फ़िर तुम शर्मा कर मुझ से लिपट गई थी
मुझे क्या पता किसी गैर की बाँहों में एक बार जाकर तुम
एक ऐसे दोस्त का साथ छोड़ दोगे
जिस ने अनगिनत बार तुम्हें गिरने से संभाला होगा
बारहा तुम्हारे आंसू देख कर तुम्हारे साथ रो दिया होगा
मगर शायद मैं तो भूल गया था
ये दुनिया तो ऐसी ही है
हर कोई किसी नए की तलाश ही में रहता है
और जब नए मिल जाते हैं
तो पहले के हर दोस्त
जागती आँखों का सपना
बन कर रह जाते हैं

4 comments:

Unknown said...

kavita achhi hai, lekin ek bar ise edit kar k bhaasha ki galtiyan sudhaar len toh behtar hoga.................

ओम आर्य said...

kawita achchhi hai par ALBELA JI ki baato se mai bhi sahamat hu....

अजय कुमार झा said...

क्यूँ एक ऐसी याद..एक ऐसा साथी ,
रहता है सबके पास..
फिर नया कौन और छूटा कौन..,
किसको कौन रहा तलाश..

जिन्दगी के एक नए फलसफे से परिचय कराने का शुक्रिया...

Anonymous said...

किसी गैर की बाहों ने तुम्हें सहारा दिया था
और फ़िर तुम शर्मा कर मुझ से लिपट गई थी
bahut khub andaze bayan khubsurat hain.