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Thursday 25 June 2009

मैं पल पल ख़ुद को मरता देखता हूँ

खुली आंखों से सपने देखता हूँ
तुम्हें हर पल सवरता देखता हूँ
मिलो या न मिलो हम से मगर
तुम्हारे ख्वाब हर दिन देखता हूँ
कोई चेहरा निगाहूँ में नही रुकता
तुम्हारे अक्स हरसू देखता हूँ
कभी तो हम मिलेंगे फिर कभी
यही अब मैं हमेशा सोचता हूँ
मेरी आँखें भी हो जाती हैं पुरनम
किसी मुफलिस को रोता देखता हूँ
अजब वहशत भरी दुनिया है जिसमे
मैं पल पल ख़ुद को मरता देखता हूँ
ये दिल किस तरह हो जाता है हल्का
मैं सब के ग़म में रोकर देखता हूँ

7 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi khubsurat lagi yah post ..........likhane andaj bhi

विनोद कुमार पांडेय said...

प्यारी कविता लिखी आपने,
समझा में,
जब भावनाओं मे खो कर देखा,

vandana gupta said...

bahut hi pyari rachna

Vinay said...

जैसा प्रेम का अनुभव हुआ!

हरकीरत ' हीर' said...

मेरी आँखें भी हो जाती हैं पुरनम
किसी मुफलिस को रोता देखता हूँ
अजब वहशत भरी दुनिया है जिसमे
मैं पल पल ख़ुद को मरता देखता हूँ

बहुत खूब लिखते हैं आप ....!!

Unknown said...

milo ya na milo hamse magar
tumhaare khwab har din dekhta hoon

JIYO JIYO .............kya baat hai !

अनिल कान्त said...

दिल की बातों को शब्दों में बखूबी ढालते हैं आप