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Wednesday 30 September 2009

मन्ना डे जादुई आवाज़ का बेताज बादशाह

ये कोई उस वक्त की बात है जब पूरी दुनिया रफी, लता, मुकेश और तलअत महमूद के गाने सुनकर उनके सुरों पर झूमती थी, उस वक्त इन महान गायकों में से एक महान गायक जिस ने अपनी आवाज़ की दिलफरेबीयों से पूरी दुनिया को मदहोश कर रखा था वह ख़ुद मन्ना ड़े सुरों पर थिरकता था। जी हां संगीत प्रेमियों के दिल की हर धडकन में धडकने वाली आवाज़ के मालिक मो. रफी के दिलों में मन्ना डे के गाने बजते थे। इस का इज़हार रफी ने कुछ इस तरह किया था कि आप हमारे गाने सुनते हो और में सिर्फ मन्ना डे यानी प्रबोधचन्द्र डे की आवाज़ पर झूमता रहता हूं। उन के इसी आवाज़ और फिल्मी दुनिया को दिए योगदान का ही नतीजा है कि आज उन्हें फिल्म जगत का सब से बड़ा अवॉर्ड दादा साहब फाल्के पुरूस्कार देने का एलान किया गया है।
सीधे साधे और आम आदमियों में खोए रहने वाले मन्ना दा को लगाव था कुश्ती और मुक्केबाज़ी से, मगर चाचा का संगीत प्रेम दिलों में घर कर गया और मन्ना दा भी सुरों का बाग बनाने का सपना देखने लगे। उस्ताद दाबिर ख़ां की हिदायत में संगीत सीखना शुरू किया और आगे चल कर उस्ताद अमान अली खां और उस्ताद अब्दुल रहमान खां की परवरिश ने उन्हें कुन्दन बना दिया।
23 साल की उम्र में मन्ना डे ने अपनी आवाज़ का जादू जगाने के लिऐ मुम्बई जाने का फैसला किया और चाचा के हमराह मायानगरी पहुंच गए। उनके सहायक बनकर काम करना शुरू किया और कुछ दिनों तक सचिन देव बर्मन के भी सहायक रहे।
1943 में फिल्म तमन्ना से जब मन्ना दा ने अपना कैरियर शुरू किया था तब फिल्मी दुनिया उनके लिए अजनबी थी, आगे क्या होगा इसका कोई अंदाज़ा ना था। मगर जब उनकी आवाज़ लोगों के कानों तक पहुंचने में कामयाब हुई तो वह हर संगीतकार के चहेते बन गए। तमन्ना में उनकी आवाज़ में गाया जाने वाला हिट हुआ और उन की आवाज़ को एक पहचान मिल गई। मन्ना डे के लिऐ ये अच्छा शगुन साबित हुआ और 1950 में रिलीज़ होने वाली फिल्म मशाल में उनके जरिये गाये जाने वाले गाने उपर गगन विशाल ने इनकी पहचान में चार चांद लगा दिए।
एक ऐसे वक्त में जब हिन्दुस्तान में क्लासिकी संगीत दम तोड़ रही थी और उस की जगह पॉप संगीत अपने पैर जमा रही थी उस वक्त मन्ना डे ने क्लासिकी संगीत का सहारा बनकर उसे दोबारा जिन्दा किया। इस में कोई शक नहीं की मन्ना डे एक पुरकशिश आवाज़ के मालिक थे मगर ये भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि वह एक सुलझे हुऐ आदमी है, वह अपने काम के तईं ईमानदार थे और उन्हों ने किसी खास बैनर के साथ बंधकर काम नहीं किया। एक खुद्दार और महान आदमी की तरह जिंदगी की सच्चाईयों को तसलीम किया और ख़ुद आगे बढ़ते रहे। मगर शायद उनका ऐसा करना उनके हक में फायदेमंद ना साबित हुआ। उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में काम करने का मौका बहुत कम मिला। मगर वो आवाज़ ही क्या जिसका जादू सर चढ़कर ना बोले, और वह सुर ही क्या जो राही के कदम ना रोक दे, मन्ना डे की आवाज़ में एसी मिठास थी की उनके पास काम की कमी नहीं रही और उन्होंने बी और सी ग्रेड की फिल्मों में ही अपना अकसर गाना गा कर अपनी एक अलग पहचान बना ली। आज मन्ना के इतने चाहने वाले हैं जिसके लिए बड़े बड़े कलाकार तरस्ते रहते हैं।
तमन्ना से शुरू होने वाला ये सफर बड़ी शान से चलता रहा। इस बीच ऐ मेरी जोहरा जबीं.., ऐ भाई ज़रा देख के चलो.., यारी है ईमान मेरा यार.., मुड मुड के ना देख.., ये इश्क इश्क है.., ये रात भीगी-भीगी.., कस्मे वादे प्यार वफा सब.., लागा चुनरी में दाग.., जिंदगी कैसी है पहली हाय.., प्यार हुआ इकरार हुआ.., ऐ मेरी जोहरां जबी.., ऐ मेरे प्यारे वतन.., पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई.., इक चतुर नार करके सिंगार.., तू प्यार का सागर है.., पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई.., जैसे कई सदाबहार गाने मन्ना डे ने गाए हैं। इन सारे गानों में संगीत प्रेमियों को अलग अलग मन्ना डे देखने को मिल सकते हैं। इस की वजह कुछ और नही बल्कि उनकी मधभरी आवाज़ है।

1 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी जामकारी है मन्ना डे जी को विन्म्र श्रद्धाँजली आभार्