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Thursday 1 October 2009

कहां है गांधी के सपनों का हिन्दुस्तान?

एक ऐसा इंसान जिसने हिन्दुस्तान को एक महान देश बनाने के लिए अपने जान की कुर्बानी दी आज उस का जन्म दिन मनाया जा रहा है मगर उसके सपनों का भारत जिस के लिए उसने कुर्बानी दी उसका वजूद खोता नज़र आ रहा।
गांधी एक ऐसा नाम है जिसने दुनिया में सिर्फ मोहनचंद के रूप में ही ज़िन्दगी नही गुज़ारी बल्कि उस ने पूरी दुनिया में हिन्दुसतान और उस की तहज़ीब को पेश किया। अपने उसूलों और सिद्धान्तों से गांधी ने पूरी दुनिया को अपना एहतराम करने पर मजबूर कर दिया। दुनिया ने यहां तक माना था कि गांधी के उसूल कामियाबी में मददगार हैं। एक अच्छा इंसान होने के साथ साथ गरीबों और समाज के हर तबके से बराबर जुड़े रहने वाले मोहनदास करमचंद गांधी ने पूरे हिन्दुसतान को साथ लेकर हिन्दुसतान की आज़ादी के सपने देखे। हिन्दु, मुसिलम, सिख और ईसाई के अलावा पूरे हिन्दुसतान को साथ लेकर चलने वाले बापू को अपना मकसद हासिल करने की राह में हज़ारों मुशकिलें आईं। आज़ादी के लिए बार-बार जेलों में जिंदगी गुज़ारने पर मजबूर होना पड़ा। पर बापू ने तो आज़ाद हिन्दुसतान का सपना देखा था। उसे महान भारत का ताज देना चाहा था। सियासत के गलत नजरियों से पाक कराने का सपना देखा था। तमाम तरह की गंदगियों से साफ भारत का ख्वाब देखा था। लेकिन वो जिंदगी ही क्या जिस में आदमी को सब कुछ हासिल हो जाए। कहा जाता है कि अकसर आदमी जो चाहता है नहीं मिलता, यही हुआ था गांधी जी के साथ भी उन्हों ने देश तो आज़ाद करवा दिया मगर इस के लिए जो सपने उन्होंने देखे थे वह पूरे ना हो सके। उनके वह सिद्धांत जो हिन्दुसतान को ऊंचाईयों तक ले जाने वाले थे वह भारत का बुरा चाहने वालों की आंखों में खटकने लगे और इस का नतीजा ये हुआ कि मुल्क आज़ाद होने के एक साल बाद उनका कत्ल कर दिया गया।
गांधी जी के देहान्त के बाद इस बात पर तो काफी शोर मचा की देश उन्ही के सिद्धानतों पर चलेगा मगर ऐसा हुआ नहीं। गांधी जी की सारी कुरबानियां तकरीबन बेकार ही साबित हुईं, उन्हों ने मुल्क को ज़रूर आज़ाद करवा दिया, यहां की जनता को आज़ादी की सुबह ज़रूर दिखला दी मगर जिस भारत की आरज़ू थी शायद वह आज तक नहीं बन सका।
इस के क्या असबाब हैं? अगर इस सवाल का जवाब तलाश करने की कोशिश की जाए तो शायद ये अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुशकिल न होगा कि आज़ादी के बाद लोगों ने लिखने और बोलने के लिए तो गांधी के उसोलों को इस्तेमाल किया मगर जब कुछ करने की बात आई तो अपने उसूल बना ड़ाले, अपने हिसाब से कौम को रास्ता दिखाने की कोशिश करने लगे और इसी सूरत में फंस कर वह भारत को एक ऐसी तारीख़ दे गए जिस में लोगों का ख़ून बहा, दुलहनों की मांग सूनी हुई, सुहागनों की चूड़ियां टूटीं, बहनों की राखी का सहारा टूटा, माओं की गोद सूनी हुई और बच्चे बाप के कंधों से महरूम हुए। तारीख़ गवाह है कि बेबुनियाद उसोल ने हिन्दुस्तान को सोने की चिड़िया से एक खौफनाक सूरतेहाल में तबदील कर दिया।
गांधी जी का तो ये मानना था कि हिन्दुस्तान अगर तलवार के रास्ते को अपनाता है तो हो सकता है उसे फौरन कामियाबी मिल जाए लेकिन इस सूरत में तशद्दुद से भरा भारत मेरे दिल का टुकड़ा नही हो सकता, पूरी दुनिया को रास्ता दिखाने के लिए हिन्दुस्तान का यही मिशन होना चाहिए कि जो बात अख़लाकी तौर पर गलत है वो सियासी तौर पर भी गलत है। मगर आज की सूरतेहाल इस के बिलकुल मुखालिफ है। गांधी और उनके दौर के महान नेताऔं के बाद जिन नेताओं ने जन्म लिया उन्हों ने तलवार के रास्ते से भारत हासिल करने की कोशिश की। क्या सिखों को कत्लेआम इस बात का सबूत नहीं, क्या अयोध्या में हुए बाबरी इंहेदाम के बाद बहने वाले ख़ून इसी बात की गवाही नहीं दे रहे, क्या गुजरात में मोदी और उसके कारकुनों के जरिए ढाए जाने वाले मज़ालिम यही दास्तान नहीं बयान कर रहे। क्या 2003 में अहमदाबाद से लेकर गुजरात के बड़े शहरों की फज़ाओं में कमसिन लड़कियों की चीख़ें और अपनी इज़्ज़त की हिफाज़त के लिए गूंजने वाली सदाऐं इस का सुबूत नहीं हैं। अख़लाक और किरदार की सारी हदों को तोड कर जो माहौल पैदा किया गया था शायद अगर आज गांधी जी भी होते तो ना जीने की दुआऐं करते। आज के इस दौर में अख़लाक वो किरदार सियासी मैदान में कोई माना नहीं रखता।
तकरीबन चार पांच दशक पहले फिल्मी दुनिया में आला ख़ानदान की लडकियां कम ही नज़र आती थी। अकसर वो औरतें जो चकलों और मुजरों पर शाइकीन का दिल लुभाती थी वही बड़े पर्दे पर भी नज़र आती थी। मगर आज वो हालात ख़त्म हो गए, सोचने के अंदाज़ बदल गए, आज हर बड़े बाप की बेटी अदाकारा बनने के ख़्वाब संजोती है। ठीक इसी तरह पहले कौम की ख़िदमत करने के जज़्बे से लोग सियासत में कदम रखते थे। मगर आज लोग अपनी बिज़नेस की दुकान चमकाने के लिए सियासत में आते हैं। उन के यहां अख़लाक की कोई अहमियत है ना किरदार कोई माना रखता है। जिस में उनका फायदा हो वह चीज़ ठीक होती है चाहे उस से तहज़ीब का ख़ून हो या समाज़ की लानत का सामना करना पड़े।
सियासत के ठेकेदारों ने आज सियासत को नया अंदाज़ दे दिया है, जिस का नतीजा साफ देखने को मिल रहा है। हर कोई सहमा हुआ है, ख़ौफ का साया हर किसी की आंख़ों के सामने लहरा रहा है। आज हिन्दुस्तानियों ने ख़ून और लहू के ऐसे मंज़र देख लिए है कि इन के दिल ख़ौफ से कांप रहे हैं। पुरसकून और अमन व अमान से लबरेज़ भारत का सपना देख कर उसे आज़ादी दिलाने की राह में मौत को गले लगाने वाले शहीदों की रूहें आज शर्मसार हो रही हैं।
आज सब कुछ बदल चुका है। जहां गांधी ने अपने आप को समाज के सबसे निचले दरजे के लोगों के लिए वक्फ़ किया वहीं आज के सियासत दान कारपोरेट सेक्टर के बड़े बड़े लोगों के तलवे चाटने पर खुश हैं। जहां गांधी जी हर वक्त लोगों के साथ बगैर सिक्योरिटी के घूमते थे, वहीं आज के भारती नेता 50 से ज्यादा पुलिस वालों को साथ लेकर चलते हैं। जहां गांधी रेल के जनरल डिब्बों में जिंदगी भर सफर करते रहे वहीं आज के नेता एसी से नीचे की सोचते तक नहीं। कुछ लोगों ने इकोनोमी क्लास में सफ़र करने का हौसला तो दिखाया है मगर कब तक यह होगा? शायद पहली और आख़िरी बार चेक करने के लिए सफर कर रहे हैं और इस के बाद दोबारा ऐसी हिम्मत न दिखा सकें। क्योंकि शशि थरूर जैसे पढ़े लिखे और महान नेता जब इकोनमी क्लास को भेड़ बकरियों की क्लास बताऐंगे तो कौन उस में सफर करेगा। सोचना तो यही है कि पांच सितारा होटलों मे जिंदगी गुजारने वाले ये नेता गांधी जी का सपना कैसे पूरा करेंगे।

7 comments:

समयचक्र said...

बहुत सटीक सामयिक पोस्ट. आभार
गाँधी शास्त्री जयंती पर शुभकामनाये

Mithilesh dubey said...

आपने बहुत ही सटिक व खरा लिखा है। आभार

"अर्श" said...

thoda kadawa hai kyunke satya hai ... badhaayee dena chahunga bebaaki se... is lekh ke liye...


arsh

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक अच्छा लेख है !

रह-रह कर उठ आता है, सवाल जहन में कि ;

क्या यही थी आज़ादी के मतवालों की
स्वतंत्र भारत की वह परिकल्पना, जहाँ ;
जनता जागरूक, नेता भ्रष्ट,
और शासन तंत्र सुप्त पड़ा होगा !
गलियों, चौराहों पर बिखरा होगा,
भ्रष्टाचार का दलदल,
और आतंक का बेखौफ दानव,
देहलीज पर हमारी खड़ा होगा !

kshama said...

Mahatma hame ek azaad hind de gaya...use sapnon kaa Hindostan banana hamara kaam tha/hai...ye kaam aur kaun karega? Apne girebaan me jhaank ne ka samay aa gaya hai...ham apne desh aur deshwasiyon ke khatir apne 24 ghanton me se kitne pal dete hain? Kya dete hain?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक प्रश्न उठाया है आपने...बापू का वतन कहीं नहीं नज़र आता...खुद को तलाशना होगा.
बहुत अच्छा लेख....बधाई

Sonalika said...

behtareen lekh