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Wednesday 28 October 2009

करवट

उम्र के एक पड़ाव पर आकर ज़िन्दगी ज़ोर ज़ोर से सासें लेने लगती है...शायद थक चुकी होती है या बहुत ज़्यादा शरारतें उसकी सांसें तोडने लगती हैं या फिर यह वक्त का तक़ाज़ा होता है... कुछ भी हो मगर यहां से ज़िन्दगी अपने रंग बदलने लगती है, कुछ कड़वाहटों का सामना होता है तो कुछ हसीन ख़्वाब रात की तारीकियों में मन को गुदगुदाते भी हैं... बच्पन की सारी शौख़ी और सारी चंचलता कहीं दूर चली जाती है, मासूम से चेहरे पर हमेशा फैली रहने वाली हंसी पंदरह सालों का लम्बा सफर तय करने में कहीं खो जाती है और उस की जगह आंखों में रंगीन शामों की धुंध और मुस्तकबिल की धुंधली तसवीर समा जाती है...हां शायद बचपन के बाद आने वाले लम्हे कुछ इसी तरह करवट लेते हैं।

8 comments:

Unknown said...

be-shaq !
aapne sahi farmaaya........
bahut achha laga ye nazariya

vandana gupta said...

waqt aise hi karvat leta hai.........insaan aur uski soch ko badal deta hai.

अनिल कान्त said...

वक़्त और जिंदगी ऐसे ही करवट लेत है भैया

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

zindagi yun hi karwaten lete lete beet jati hai...bahut khoob..

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही कहा बक्त को कोई नहीं बाँध सकता जीवन परिवर्तनशील है बहुत दिन बाद आयी इस ब्लाग पर शायद बहुत कुछ अच्छा पढने से रह गया फिर देखती हूँ शुभकामनायें

M VERMA said...

जिन्दगी का फलसफा

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

ekdam sahi baat....

अमृत कुमार तिवारी said...

दुरुस्त फरमाया है....शायद जिंदगी की यही दांसतान है।