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Monday, 29 June 2009

साहिल के साथी का इंतज़ार


क्या तुम जानते हो तुम्हारे इंतज़ार में कितने सूरज डूब गए....... कितने लोग इस साहिल पर आए और घंटों बातें करके चले गए........ पानी की कितनी लहरों ने तुम्हारा नाम ले कर मुझे छेड़ा है......... कितने लोग तुम्हारा नाम लेकर मुझ पर हंस कर अपनी राह लग लिए ....क्या तुम को याद है की कितने देर के लिए तुम यहाँ से गए थे ....... शायद नही ...पर मैं तो अब तक तुम्हारी राह देख रही हूँ ..... काश तुम उन अनदेखे पानियो की तरफ़ से लौट आओ .......शायद समंदर के किनारे रे़त पर बैठी वह लड़की भी दूर से आती लहरों को देख कर यही कुछ सोच रही थी....

Thursday, 25 June 2009

मैं पल पल ख़ुद को मरता देखता हूँ

खुली आंखों से सपने देखता हूँ
तुम्हें हर पल सवरता देखता हूँ
मिलो या न मिलो हम से मगर
तुम्हारे ख्वाब हर दिन देखता हूँ
कोई चेहरा निगाहूँ में नही रुकता
तुम्हारे अक्स हरसू देखता हूँ
कभी तो हम मिलेंगे फिर कभी
यही अब मैं हमेशा सोचता हूँ
मेरी आँखें भी हो जाती हैं पुरनम
किसी मुफलिस को रोता देखता हूँ
अजब वहशत भरी दुनिया है जिसमे
मैं पल पल ख़ुद को मरता देखता हूँ
ये दिल किस तरह हो जाता है हल्का
मैं सब के ग़म में रोकर देखता हूँ

Wednesday, 24 June 2009

तुम ही तुम ...

हर रात सोने से पहले
कलम उठाता हूँ
सोचता हूँ कुछ लिखों
कापी के सादे पन्नों पर
कुछ रक़म करू
कुछ पल, कुछ यादें
कुछ लोग, कुछ बातें
कुछ दर्द, कुछ आहें
कुछ आंसू , कुछ मुस्कुराहटें
कुछ तड़प, कुछ सुकून
कुछ कसक , कुछ राहत
लेकिन
जब लिखने लगता हूँ
कलम तुम्हारे सिवा
कुछ लिखता ही नही
जेहन को को तुम्हारे सिवा
कुछ सूझता ही नही
यादों में तुम्हारी तुम्हारी याद के सिवा
कोई याद बाक़ी ही नही रहती
दिल की हर धड़कन
तुम्हारा ही नाम लेकर धड़कने लगती है
आँख तुम्हारी सूरत के सिवा
कोई चेहरा दिखलाती ही नही
तनहा बिस्तर की हर करवट
तुम्हारे साथ बीते हसीं दिनों को सोचने पर मजबूर कर देती है
मैं लाख चाहूं की तुम्हारे सिवा
कुछ और लिखो
जिस में तुम कहीं न हो
तुम्हारा कोई ज़िक्र न हो
पर मैं नाकाम रहता हूँ
शायद मेरी ज़िन्दगी का हर लम्हा
तुम्हारा है
तभी तो
कलम , कागज़ , सियाही
हाथ , आँख , तन्हाई
सब मेरा साथ छोड़ देते हैं

Sunday, 21 June 2009

किसी का साथ...हर किसी की चाहत


तन्हाई किसे अच्छी लगती है ? कौन अकेला रहना पसंद करता है ? कौन है जिसे महफिले जानां से बैर हो ? शायद कोई नही .हर किसी को किसी की तलब ज़रूर है , कोई हमनवा , कोई हमसफ़र ,कोई हम प्याला कोई हमनिवाला हर साँस लेते इंसान की ज़रूरत है. कोई किसी सच्चे दोस्त की तलाश में है तो कोई किसी महबूब और कोई महबूबा का तलबगार है । किसी को दिलरुबा के बाहों के घेरे चाहिए तो कोई महबूब के कुशादा बाजुओं की जन्नत का तालिब है । कोई महबूबा के रुखसार और होंट को देख कर जीना चाहता है तो कोई उस की हर अदा को ग़ज़ल बना कर , उसे लफ्जों का पैरहन देकर हमेशा अपने हमराह रखना चाहता है। कोई उस की मदहोश आंखों का परिस्तार बनना चाहता है तो कोई उस की बदमस्त और अल्लहड़ पलकों में अपने नाम के सपने देखने का शौकीन है। कोई उस की घनेरी जुल्फों के साए में मई जून की गर्मियां बिताना चाहता है तो कोई उस की साँसों की गर्मी में डूब कर अपनी फरवरी गुजारना चाहता है। बड़े हिम्मत वाले होते है वो जो इस मकसद को हासिल करने के लिए आगे क़दम बढ़ते हैं , मगर एक तलख सच्चाई ये भी है की हर कोई किसी से ताल्लुकात बनाने में इतना जल्दबाज़ नही होता , अगर किसी को महबूब को पाने की खुशी इस जानिब बढ़ने की तरफ़ उभारती है तो कोई उसे पाकर खो देने के खौफ से उसे पाने के लिए क़दम न बढ़ा कर पीछे हट जाता है और फिर तसौउरात में उसी के यादों में खो कर अपनी पूरी ज़िन्दगी खुशी खुशी गुजार देता है ।

Saturday, 20 June 2009

कोई ऐसा मिले तो !

सोचा तो है
जैसे बादल सूरज को
जैसे चाँदनी चाँद को
जैसे माली बाग़ को
जैसे पानी दरया को
जैसे हिरन जंगल को
जैसे मोर वन को
जैसे आँख बदन
जैसे फूल चमन को
जैसे आंधी काली घटा को
जैसे दर्द दवा को
जैसे चील फिजा को
जैसे शमा सहर को
चाहती है
हम भी चाहेंगे
पर
कोई ऐसा रिश्ता बने तो
कोई ऐसा मिले तो ...

Saturday, 13 June 2009

गैर की बाहें

एक बार आज फ़िर उस रास्ते से गुज़रा
जहाँ हम अक्सर बैठ के देर तक बातें किया करते थे
पानी की लहरें बार-बार पैरो से टकरा रही थी
अब के बार एक शोख लहर आई
साहिल पर खड़ी एक अलबेली लड़की के पाव़ फिसल गए
हमसफर ने बड़ी मुश्किल से संभाला था उसे
फिर दोनों एक दूसरे से लिपट कर बड़ी देर तक
आसमानों में उड़ते रहे
ख्याल की परियों ने तुम्हारी सूरत दिखा दी
शक्ल देखते ही याद आया
यही तो वो जगह थी
जहाँ तुम भी एक बार फिसली थी
और पहली बार मेरे सिवा
किसी गैर की बाहों ने तुम्हें सहारा दिया था
और फ़िर तुम शर्मा कर मुझ से लिपट गई थी
मुझे क्या पता किसी गैर की बाँहों में एक बार जाकर तुम
एक ऐसे दोस्त का साथ छोड़ दोगे
जिस ने अनगिनत बार तुम्हें गिरने से संभाला होगा
बारहा तुम्हारे आंसू देख कर तुम्हारे साथ रो दिया होगा
मगर शायद मैं तो भूल गया था
ये दुनिया तो ऐसी ही है
हर कोई किसी नए की तलाश ही में रहता है
और जब नए मिल जाते हैं
तो पहले के हर दोस्त
जागती आँखों का सपना
बन कर रह जाते हैं

Sunday, 7 June 2009

तुम को इस से क्या?

मैं जलता रहूँ
मेरी दुनिया से खुशियाँ रूठ जाएं
मेरे अपने भी मुझे भूल जाएँ
मेरे अश्याने में हवा भी आने से इनकार कर दें
रौशनी मुझे रास न आए
दर्द का असर मेरे चेहरे पर उतर आए
मैं दरबदर मारा मारा फिरूं
ज़िन्दगी मुझे रास ना आए
मुझे हर रोज तुम्हारी बातें याद आयें
आंखों में आन्सो दें
और फिर
देर तक आँखों से बरसात होती रहे
पर
मैं कहाँ हूँ
कैसा हूँ
तुम को इस से क्या
तुम ने तो अपनी राहें बदल ली हैं
तुम अब बहुत दूर जा चुकी हो
शायद तुम्हें गुज़रे लम्हात भी याद ना हो
हो सकता है तुम्हें
बूढे बरगद के नीचे बैठ कर की गई
बातें , वादे , कसमें कुछ भी याद ना हो
क्या तुम्हें ये भी याद नहीं की आँखें नींद से कितनी जल्दी
बोझल हो जाती थीं
मगर अब मैं रात रात जागता रहूँ
मेरी आँखों से नीद रूठ जाए
मगर हाँ
तुम को इस से क्या ?
अब तो कोई और दुनिया तुम्हारे लिए बाहें फैलाये है
मेरा अतीत तो अब
तुम्हारी ज़िन्दगी से बहुत दूर हो चुका है

Wednesday, 3 June 2009

...पूरे बदन पर आबले पड़ चुके थे

रात फ़िर नीद आंखों से बहुत दूर

आसमान पर बिखरे लाखों तारों के बीच

इकलौता चाँद देखते ही

मुझे लगा जैसे कोई मुझे आवाज़ दे रहा है

मैं ख्यालों में

कहीं अनदेखे वादियूं की तरफ़

तुम्हें ढूँढने निकल पड़ा

शांत हवा ने गर्मी और बढ़ा दी थी

तम्प्रेचर बहुत ज़्यादा हो गया था

मगर क्या करता

तुम्हारा ख्याल मुझे रुकने नही दे रहा था

तुम कैसी होगी

तुम्हारे यहाँ

तापमान क्या होगा

तुम भी मेरी तरह तारे गिनती होगी

तुम्हारे बिस्तर पर भी

बेक़रारी की करवटें बे शुमार

शिकन बना दी होंगी

सोचों के इसी सेहरा में चक्कर काटते काटते

नीद ने कब मुझे

अपनी बाहूं में भर लिया

कुछ पता ही न चला

मगर

जब सुबह आँख खुली

नहाने के लिए कपड़े बदले

तो देखा

मेरे पूरे बदन पर आबले पड़ चुके थे