Pages

Tuesday 29 June 2010

तुमसा कुछ पाना चाहता हूं....


पाने को तो बहुत कुछ है

पर तुमसा कुछ पाना चाहता हूं

मुस्कुराते हुए लब

मस्ती में डूबी निगाहें

और गालों पर फैली थोड़ी सी लाली

पाने को तो बहुत कुछ है...

एक मुठ्ठी खुशियां

उम्र भर का तुम्हारा साथ

और एक क़तरा कामयाबी

पाने को तो बहुत कुछ है...

आवारा बादलों का एक टुकड़ा

चांद पर छोटा सा आशियां

और ज़िंदगी में बहुत कुछ कर गुज़रने का साहस

पाने को तो बहुत कुछ है

पर तुमसा कुछ पाना चाहता हूं....

20 comments:

माधव( Madhav) said...

nice ghazal

Amit Chandra said...

kaya kamal ki gazal hai.

Unknown said...

achhi kavita

abhaar !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति

Anonymous said...

खूबसूरत रज़ी भाई...

शबनम खान said...

razi sahab apki jitni ghazale padti hu dil ko chhu jati ha...ye bhi bohot khubsurat ha...

Sonalika said...

bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.

or haan deri ke liye sorry.

Anonymous said...

bahut khoob...

रश्मि प्रभा... said...

क्योंकि तुमको पाकर सब मिल जायेगा ....

निर्मला कपिला said...

पाने को तो बहुत कुछ है

पर तुमसा कुछ पाना चाहता हूं....
बेशक जिन्दगी मे बहुत कुछ हो फिर भी किसी अपने की कमी खटकती है। बहुत अच्छी रचना । शुभकामनायें

mridula pradhan said...

very good.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr.Ajmal Khan said...

बहुत खूबसूरत... आप की ख्वाहिश पूरी हो आमीन.............

नीरज गोस्वामी said...

अच्छे शब्द और भाव शब्द लिए आपकी रचना अप्रतिम है...बधाई...
नीरज

Shah Nawaz said...

"पाने को तो बहुत कुछ है
पर तुमसा कुछ पाना चाहता हूं"


बहुत खूबसूरत. दिल को छू लेने वाली रचना..... बहुत खूब!

شہروز said...

achcha andaaz !
इस्लाम में कंडोम अवश्य पढ़ें http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post.html

कमाल कानपुर said...

अरे वाह ।आप तो कमाल का लिखते हैँ काफी दिन हो गये फटाफट नया लिख डालिये GOOD LUCK

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi sundar va bhav vibhor kar dene sundar post.
poonam

संजय भास्‍कर said...

बेशक जिन्दगी मे बहुत कुछ हो फिर भी किसी अपने की कमी खटकती है। बहुत अच्छी रचना । शुभकामनायें

अमृत कुमार तिवारी said...

hummm....nice shaab...