Pages

Saturday 17 July 2010

साथ फिर छोड़ गया वक्त का दरया बन कर


लम्हा लम्हा से बदलती हुई दुनिया में
चंद लम्हात की दे करके ख़ुशी छोड़ गया
एक तो वैसे ही ज़ख़्मों की कमी ना थी मुझे
दर्द कुछ अपने मेरे नाम किए, छोड़ गया
**********
वह मिला था मुझे एहसास का जुगनू बन कर
प्यार, इक़रार, वफ़ा, इश्क़ का पैकर बन कर
तुम मेरी जान हो हर ग़म मुझे अपना दे दो
मेरे हर दर्द चुरा लेता था वह इतना कह कर
बिखरी रहती थीं मेरी ज़ुल्फ़ें मेरे शाने पर
चूम लेता था मेरे लब उन्हें सुल्झा कर के
सुब्ह से शाम तलक साथ रहा करता था
और ख़्वाबों में भी आ जाता था दूल्हा बन कर
मेरी आंखों में नए रंग नए ख़्वाब भरे
साथ फिर छोड़ गया वक्त का दरया बन कर

18 comments:

संजय भास्‍कर said...

वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

संजय भास्‍कर said...

mere blog par swagat hai..
कहां से आया ये सॉरी...!
my new post......

रश्मि प्रभा... said...

एक तो वैसे ही ज़ख़्मों की कमी ना थी मुझे
दर्द कुछ अपने मेरे नाम किए, छोड़ गया
waah

Sonalika said...

bahut sunder
bahut dino baad itni acchi rachana ki hai tumne.
bahut bahut badhai.

Vinay said...

बहुत ही बढ़िया

mai... ratnakar said...

wah kya baat hai! bahut khoob likha hai, badhai

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत खूबसूरत रचना है,
दिल को छू गई।

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत खूबसूरत रचना है...!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत ..

हरकीरत ' हीर' said...

खुबसूरत अंदाज़......!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत ग़ज़ल

निर्मला कपिला said...

विरह वेदना ,ाच्छी अभिव्यक्ति। शुभकामनायें

हिन्दीवाणी said...

और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा। बस देखने की जरूरत है।

seema gupta said...

साथ फिर छोड़ गया वक्त का दरया बन कर
" इसी एक पंक्ति ने मन को छु लिया.."
regards

Sumant said...

So beautiful and nice post.
Keep writing

www.alienshot.blogspot.com

अमृत कुमार तिवारी said...

"साथ फिर छोड़ गया वक्त का दरया बन कर"
आह....

Neelam said...

सुब्ह से शाम तलक साथ रहा करता था
और ख़्वाबों में भी आ जाता था दूल्हा बन कर
मेरी आंखों में नए रंग नए ख़्वाब भरे
साथ फिर छोड़ गया वक्त का दरया बन कर...uffff bahut khoob.