रात तारीकियों का पहरा था
मेरी खिड़की के दोनों दरवाज़े
हवा के तुन्द झोंकों से लड़ रहे थे
चंद जुगनू कभी चमक करके
तीरगी से भरी मेरी कोठरी में
खैरात में रौशनी के चंद टुकड़े उंडेल देते थे
सारी दुनिया थी अपने ख़्वाबों में
मैं तुम्हारे ख़्यालों में जागता ही रहा
वक्त की रफ्तार और दिल की धड़कनों की शिद्दत
आंकने की बेजा कोशिश कर रहा था
ज़ेहन के पुराने दफ्तर से
हर एक याद काग़ज़ पर उतरने को बज़िद थी
बिस्तर की सिलवटें कराह रही थीं
दर्द आंखों के रस्ते गालों को छू रहा था
तुम्हारी बातें कानों के परदे से बराबर टकरा रही थीं
हर याद बस तुम्हारे गीत गाने को कह रही थी
किसी को कुछ पता नहीं था
सब अपनी ही गा रहे थे
हां, वह सब अपनी जगह सही भी थे
महीना भी तो यही था
मई का
हां, यही तारीख भी थी
समां भी कुछ ऐसा ही था
हां, उस वक्त मैं तन्हा नहीं था
तुम्हारी बाहों के घेरे थे
तुम्हारी ज़ल्फों का साया था
तुम्हारे चेहरे की ख़ूबसूरत रौशनी थी
तुम्हारे बदन की ख़ुशबू से
पूरा कमरा भरा हुआ था
हां, ठीक उसी वक्त
हम ने ख़िडकी के बाहर
सितारे को टूटते देखा था
और फिर यक-ब-यक
हम दोनों ने दुआ के लिए हाथ उठा लिए थे
तुम्हें याद है हमने क्या मांगा था
मेरे ख़ुदा, हम कभी जुदा ना हों
मगर उस हसीन रात के बाद
मिलन की कोई रात आई ही नहीं
9 comments:
Aise lamhaat guzare nahi guzarte..lagta hai waqt tahm gaya ho..milan ho ya judayi..waqt ki raftaar wahi..
achchhi lagi :)
उफ़्…………………?
बहुत खूब.........
खूबसूरत बन्दिश अलफ़ाज़ की भी......जज़्बात की भी...........
बधाई!
जज्बातों को खूब शब्द दिए हैं....अच्छी रचना
बहुत खूब, लाजबाब !
तुम्हें याद है हमने क्या मांगा था
मेरे ख़ुदा, हम कभी जुदा ना हों
मगर उस हसीन रात के बाद
मिलन की कोई रात आई ही नहीं
इतना खूबसूरत लिखा है इक पूरा चित्र सा खिंच गया.टूटे सितारे से मांगी दुआ भी कबूल न हुई.
अच्छी रचना....
बधाई!
हम ने ख़िडकी के बाहर
सितारे को टूटते देखा था
और फिर यक-ब-यक
हम दोनों ने दुआ के लिए हाथ उठा लिए थे
तुम्हें याद है हमने क्या मांगा था
मेरे ख़ुदा, हम कभी जुदा ना हों
मगर उस हसीन रात के बाद
मिलन की कोई रात आई ही नहीं........wah bahut khoob....
kahte hain waqt kabhi nahi rukta..magar jab kabhi milan ki ghadhi aati hai ya judaai ke lamhe..tab waqt thahar saa jata hai meel ke patther ki tarah.
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