इन दिनो कुछ अजीब आलम
प्यार की राह देखती हूं मैं
ज़िंदगी की तलाश में शब भर
चांद तारों से बातें करती हूं
प्यार, इक़रार और वफ़ा हमदम
सबके मानी तलाशती हूं मैं
ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है
रात आंखों में काटती हूं मैं
जिसको पाना था उसको पा तो गई
फिर भी तन्हाईयों में जीती हूं मैं
क्यों ये लगता है वह नहीं मेरा
सांस दर सांस जिस पे मरती हूं मैं
वह जो धड़कन में मेरी बसता है
शायद उसके लिए नहीं हूं मैं
प्यार की राह देखती हूं मैं
ज़िंदगी की तलाश में शब भर
चांद तारों से बातें करती हूं
प्यार, इक़रार और वफ़ा हमदम
सबके मानी तलाशती हूं मैं
ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है
रात आंखों में काटती हूं मैं
जिसको पाना था उसको पा तो गई
फिर भी तन्हाईयों में जीती हूं मैं
क्यों ये लगता है वह नहीं मेरा
सांस दर सांस जिस पे मरती हूं मैं
वह जो धड़कन में मेरी बसता है
शायद उसके लिए नहीं हूं मैं
8 comments:
ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है
रात आंखों में काटती हूं मैं
kya soch hai
क्यों ये लगता है वह नहीं मेरा
सांस दर सांस जिस पे मरती हूं मैं
वह जो धड़कन में मेरी बसता है
शायद उसके लिए नहीं हूं मैं
Bahut nazuk alfaaz!Komal bhavnayen!
"ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है"
मन की उलझनों को दर्शाते सुंदर शब्दोभाव
very best hai jee!
सहाब मियां...किस लाइन के बारे में बोलूं...शब्द नहीं हैं कि बता सकूं..
ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है
रात आंखों में काटती हूं मैं
bahut khubsurat !
जिसको पाना था उसको पा तो गई
फिर भी तन्हाईयों में जीती हूं मैं
क्यों ये लगता है वह नहीं मेरा
सांस दर सांस जिस पे मरती हूं मैं
वह जो धड़कन में मेरी बसता है
शायद उसके लिए नहीं हूं मैं
जिसे हम पा लेते हैं वहाँ प्यार नहीं होता और जहां प्यार होता है उसे पा नहीं सकते ......!!
आपने मन के भावों को बहुत सुंदर तरीके से पिरोया है ......
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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