Pages

Friday 8 January 2010

सर्द रातों में फटी चादर...


...जब ठंड ने जवां ख़ून को सर्द कर दिया था...शराब का सहारा लेकर गर्मी हासिल करने की कोशिश की जा रही थी...पूरा घर बिजली के कुमकुमों, सुरेले साज़ों और मस्त धुनों पर थिरकती जवानियों से पटा हुआ था...उस वक्त गेट पर बैठा बूढ़ा दरबान तेज़ हवाओं से लड़ रही अपनी फटी चादर में खुद को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था...

9 comments:

Sonalika said...

achi koshish

निर्मला कपिला said...

इसे लघुकथा कहूंम तो सही है बहुत अच्छी तरह चन्द पँक्तिओं मे अमीर गरीब का भेद बता दिया शुभकामनायें । बहुत संवेदनशील हो

vandana gupta said...

bahut hi suksham drishti aur utni hi gahanta se prastuti.........badhayi.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

marmsparshi laghu katha.....

tikshn avlokan

अमृत कुमार तिवारी said...
This comment has been removed by the author.
अमृत कुमार तिवारी said...

वाकई में अच्छी लघु कथा। निर्मला कपिला जी ने सटिक बात कही है।

Anonymous said...

क्या बात कह दी रज़ी साहब आपने। गूढ बात।

शबनम खान said...

रज़ी जी आपने तो वो महसूस कर लिया जो अच्छे अच्छे अनदेखा कर गए...
बहुत अच्छा...

रंजू भाटिया said...

सही कहा उसके दर्द को बहुत कम लोग महसूस कर पाते हैं ....रात को गली में दिलती उसकी आहट सर्दी के निर्मम मिजाज से दिल को झंझोर देती है ..