
अब के फिर जाग के रातों की ख़नक देखी है
कितनी सुंदर है वो एहसास की मूरत की तरह
जैसे पाज़ेब किसी ने कहीं छनकाई हो
जैसे मूरत कोई रस्ते पे निकल आई हो
जैसे गुलनाज़ कोई टब से नहा कर निकले
जैसे खुश्बू लिए बाद-ए-सबा आई हो
जैसे जंगल में कोई राग नया छेड़े हो
जैसे बदमस्त कोई साज़ नया छेड़े हो
जैसे कुछ मोर कहीं नाच में मस्त रहें
जैसे कोयल ने कहीं कूक बजाई हो
जैसे दिलदार की पलकों में कोई ख़्वाब पले
जैसे मासूम सी मूरत मेरे घर आई
ऐसे चलती है वो छुप-छुप के सभी से अक्सर
जैसे दोशीज़ा कोई यार से मिल आई हो
चांद भी उसके सदा साथ चला करता है
जैसे बचपन से क़सम उसने यही खाई हो
सब गुनाहों को ये ऐसे छुपा लेती है
जैसे मां बच्चे को सीने से लगा लाई हो
कितनी सुंदर है वो एहसास की मूरत की तरह
जैसे पाज़ेब किसी ने कहीं छनकाई हो
जैसे मूरत कोई रस्ते पे निकल आई हो
जैसे गुलनाज़ कोई टब से नहा कर निकले
जैसे खुश्बू लिए बाद-ए-सबा आई हो
जैसे जंगल में कोई राग नया छेड़े हो
जैसे बदमस्त कोई साज़ नया छेड़े हो
जैसे कुछ मोर कहीं नाच में मस्त रहें
जैसे कोयल ने कहीं कूक बजाई हो
जैसे दिलदार की पलकों में कोई ख़्वाब पले
जैसे मासूम सी मूरत मेरे घर आई
ऐसे चलती है वो छुप-छुप के सभी से अक्सर
जैसे दोशीज़ा कोई यार से मिल आई हो
चांद भी उसके सदा साथ चला करता है
जैसे बचपन से क़सम उसने यही खाई हो
सब गुनाहों को ये ऐसे छुपा लेती है
जैसे मां बच्चे को सीने से लगा लाई हो
14 comments:
वाह जी बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी हैं , एक दम कमाल
अजय कुमार झा
bhut khoobsurt
tumhe nahi lagata bahut din baad aisa kuch likha hai
khoobsurt lafjo se sajai hai rachana
ek baar fir kahungi bahut khoobsurt
waah waah........bahut hi sundar ......ise padhkar to wo gaana yaad aa gaya.......
ek ladki to dekha to aisa laga
Vandana ji ki trha hi apki rachna padhte hue man me yahi gana aa raha tha Ek ladki ko dekha toh aisa laga.jaise....
razi sahab apke toh kya kehne... ek raat ki itni tareef..khushnaseeb hogi vo rat jise apne tareef k ye alfaz bakshe..
बहुत खूब....बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
वाह बहुत सुन्दर रचना है बधाई। आशीर्वाद्
waah bahut hi khoobsurat rachna hai .achchha likhte hai aap
जैसे खुश्बू लिए बाद-ए-सबा आई हो
जैसे जंगल में कोई राग नया छेड़े हो
जैसे बदमस्त कोई साज़ नया छेड़े हो
जैसे कुछ मोर कहीं नाच में मस्त रहें
जैसे कोयल ने कहीं कूक बजाई हो
जैसे दिलदार की पलकों में कोई ख़्वाब पले
जैसे मासूम सी मूरत मेरे घर आई
वाह ....राज़ी जी काफी पकड़ है शब्दों पर .....लिखते रहिये ......!!
maa se judi har baat hi alag hoti hai
ऐसे चलती है वो छुप-छुप के सभी से अक्सर
जैसे दोशीज़ा कोई यार से मिल आई हो
चांद भी उसके सदा साथ चला करता है
जैसे बचपन से क़सम उसने यही खाई हो........
बहुत सुन्दर बहुत ही सुन्दर शब्दों का अति सुन्दर प्रयोग
bahut sunder
सब गुनाहों को ये ऐसे छुपा लेती है
जैसे मां बच्चे को सीने से लगा लाई हो...बेहद सुन्दर कहा आपने .शुक्रिया
bahut sundar...
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
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