मुसलसल ख़्वाब आते हैं
अपने घर आराम करने जा रहा है
कोई पागल , दीवानी
बाल खोले, नन्गे क़दम, दीवानावार
तपती रेत पर सरपट भाग रही है
दुपट्टा उसके सर से होता हुआ
कांधे पर आ कर लटक गया है
उसकी बालियां कानों में झूला झूल रही है
उसके होंट प्यास से सूख गए हैं
उनकी सुर्खी कहीं गायब हो गई है
रेशमी ज़ुल्फों पर धूल की तह जम रही है
आंखों में रेत के हज़ारों ज़र्रे गड़ रहे हैं
रूखसारों पर आंसू के कतरों और
रेत के टुक्डों ने ज़ख्म का सा निशान बना दिया है
वह एक हाथ आगे बढ़ाए हुए है
ऐसा लग रहा है किसी को रोकने की कोशिश कर रही है
मुंह खुला हुआ है
ज़रा क़रीब जा के देखा
शक्ल और साफ हो गई
मगर
अब कुछ आवाज़ें भी सुनाई दे रही थी
‘‘सुनो साजन
तुम मत जाओ
मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगी
सुनो
लौट आओ
अब मुझे चूड़ी, कंगन
मेंहदी, बिंदिया
अफशां, लाली
कुछ नहीं चाहिए
सुनो
बस तुम लौट आओ
मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगी
सुनो साजन
मेरा हर सिंगार तुम हो
और मैं तुम बिन अधूरी हूं ’’
13 comments:
मैं तुम बिन अधूरी हूं
बस तुम लौट आओ
बहुत गहरा अह्सास.....मन को भिगो गया.
बस तुम लौट आओ
मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगी
सुनो साजन
मेरा हर सिंगार तुम हो
और मैं तुम बिन अधूरी हूं ’’
बहुत भावनात्मक अभिव्यक्ति है तडप का एहसास है शुभकामनायें
बहुत ही भावनात्मक है
अच्छी कविता है
Dard se sisaktee rachna..
dard hi dard samaya hai........bahut sundar.
बस तुम लौट आओ
मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगी
सुनो साजन
मेरा हर सिंगार तुम हो
और मैं तुम बिन अधूरी हूं ’’
मनुहार की बहुत सुन्दर रचना
waah....good one dear
bahut bhavatmak rachna hai.....marmsparshi.....badhai
bhut khoobsurt abhiwakti hai
kaise samajh lete ho etna kuch
behtreen rachana.
रज़ी जी आपकी इस रचना ने तो मुझे निशब्द कर दिया है....
शुक्रिया....
रज़ी जी आपकी इस रचना ने तो मुझे निशब्द कर दिया है....
शुक्रिया....
बस तुम लौट आओ
मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगी
सुनो साजन
मेरा हर सिंगार तुम हो
और मैं तुम बिन अधूरी हूं ’’
देवता नि:शब्द कर दिए....
मेरा हर सिंगार तुम हो
और मैं तुम बिन अधूरी हूं ’’
मनुहार की बहुत सुन्दर रचना
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