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Friday 22 May 2009

वो जो हममे तुममे करार था...

गज़ल हमेशा से ही शेरो शायरी और अदब व लिटरेचर की फहम रखने वालों की महबूब सिन्‍फ रही है। महबूब और इश्क व आशिकी की दास्‍ता, उसमें सहे गए दर्द, बहाए गए अश्‍क, करवटों में में काटी गई रातें, सर्द हवाओं में जलती सांसों और महबूब के दीदार की तड़प जिस नुदरत और पुरकशिश अंदाज से गज़ल की जबान में बयान की जाती है वो इसे मकबूल बनाने सबसे अहम किरदार अदा करती है। गज़ल उस वक्‍त दिलों दिमाग पर पूरी तरह हावी होकर इनसान को अपना गिर्वीदा बना लेती है जब कोई दिलकश आवाज़ इस हसीन सिन्‍फ को अपनी पसंद बनाती है और अपनी आवाज को इस तरह से इसके अल्‍फाज वा मायनी के मुताबिक ढाल देती है कि सुनने वाले अपनी चाहने वालों की यादों में खो जाते हैं। अपनी मुतरन्निम आवाज को मौसीकी और सुर ताल का हसीन संगम देते हुए जो लोग गज़ल गायकी को अपना महबूब मशगला बना लेते हैं वो अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हो जाते है।
आज जहां गुलाम अली, पंकज उदास, जगजीत सिंह, मेहदी हसन और इनके अलावा भी कई सारे गज़ल गायक हैं जिनकों लोग अपनी पलकों पर बिठाए हुए हैं उसी तरह अगर हम कुछ पहले देखें तो ऐसे बहुत सारे नाम आएंगे जिनकों अगर आज के गज़ल गुलूकारों का उस्‍ताद कहा जाए तो बेजा न होगा। जहां नूरजहा बानों ने गज़ल गायकी को एक नई पहचान दी वहीं बेगम अख्‍तर ने अपने फन का जादू चलाया और अपनी वफात के तकरीबन 34 साल बाद भी अपने चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं।
बेगम अख्‍तर उत्‍तर प्रदेश के मशहूर शहर फैजाबाद में सात अक्‍टूबर सन 1914 में पैदा हुई थी उनका पैदाइशी नाम अख्‍तरी बाई फैजाबादी था। मगर वो बेगम अख्‍तर के नाम से मशहूर हुई। अख्‍तरी बाई फैजाबाद के एक आला खानदान से ताल्‍लुक रखती थी।जिसका म्‍यूजिक और मौसिकी से कोई लगाव नहीं था मगर अख्‍तरी बाई ने अपनी नौउम्री में ही मौसिकी से अपने दिली लगाव का इजहार कर दिया था जिसके बाद उन्‍हें इसमैदान में कुछ सीखने के लिए बड़े-बड़े माहिरी के पास भेजा गया। सबसे पहले उन्‍हें कोलकाता की सैर कराई गई जहां उन्‍होंने मशहूर सारंगी के उस्‍ताद इमाद खान से जिंदगी में मौसिकी की दुनिया में कुछ करने की तालीम हासिल की इसके बाद उन्‍होंने क्‍लासिकल म्‍यूजिक की तालीम अपने वक्‍त के माहिरीन जैसे मोहम्‍मद खान, अब्‍दुल वहीद खान और उस्‍ताद झंडे़ खान साहब वगैरह से हासिल की ।
उनकों पहली बार पब्लिक परफारमेंस करने का मौका 15 साल की उम्र में मिला और उस वक्‍त उन्‍होंने अपनी आवाज का ऐसा जादू जगाया कि लोगों ने उन्‍हें हाथों हाथ कुबूल किया। उसके बाद उन्‍हें बेपनाह मकबूलियत हासिल हो गई। बुलबुले हिंद के नाम मशहूर सरोजनी नायडू उनकी गज़ल से बहुत खुश हुई थी। जो उनकी कामयाबी की एक बहुत बडी़ दलील है।उनकी पहली रिकॉर्डिंग मेगाफोन कम्‍पनी के जरिए सन 1930 में हुई थी। उस वक्‍त उनकी मधुर और दिलकश गज़लों, ठुमरी और दादरी के अलावा और भी किस्‍में रिलीज की थी। बेगम अख्‍तर को फिल्मों में काम करने का मौका मिला। ईस्‍ट इंडिया फिल्म कम्‍पनी ऑफ कलकत्‍ता ने उन्‍हें सन 1933 में किंग फॉर ए डे और नील दमयंती फिल्म में काम करने का मौका दिया। इसके बाद उन्‍होंने फिल्मों में एक्टिंग करना जारी रखा।बेगम अख्‍तर ने अमीना 1934, मुमताज बेगम 1935, जमाने नशा 1935 और नसीब का चक्‍कर 1935 में अदाकारी की। इसके साथ ही उन्‍होंने इन तमाम फिल्मों में अपने सारे गाने खुद ही गाए।
इसके बाद बेगम अख्‍तर डायरेक्‍टर महबूब खान की फिल्म रोटी की शूटिंग के लिए लखनऊ चली आईं। इस फिल्म के छह गाने उन्‍होंने ही गाए यह फिल्म 1942 में रिलीज हुई लेकिन डायरेक्‍टर और प्रोड्यूसर के दरमियान आए कुछ तनाव की बिना पर इसके चार गाने खत्‍म कर दिए गए थे। मगर इस फिल्म से उन्‍हें बहुत मकबूलित हासिल हुई और वह मद्दाहों के दिलों पर राज करने लगी। उनकी मुतरन्निम आवाज में लोगों के कानों में ऐसे रस घोले कि लोग उन्‍हें मलिकाए तरंनुम के नाम से पुकारने लगे। वह महफिल जहां बेगम अख्‍तर का जाना होता था लोगों की भीड़ उनकों दाद देने के लिए उमड़ पड़ती थी। उन्‍होंने आखिरी बार सत्‍यजीत राय की बंगाली फिल्म जलशा घर में काम किया। इसमें उन्‍होंने एक क्‍लासिकल सिंगर का किरदार अदा किया था।
जिंदगी हमेंशा एक ही रफ्‍तार से नहीं चलती जब बेगम अख्‍तर ने 1945 में बैरिस्‍टर इश्तियाक अहमद से शादी की तो उसके बाद खानदानी असबाब ने उन्‍हें संगीत की दुनिया से दूर कर दिया। अपने महबूब फन से दूर कर दिया जाना उन्‍हें रास नहीं आया। वह खुद को बीमार महसूस करने लगी। हकीमों की दवाइयां भी बेअसर रही। बाद में उनका गायकी का फन ही उनके काम आया वाकई जिसका दर्द और दवा दोनों ही संगीत हो तो फिर उसे उससे कैसे दूर रखा जा सकता है। बेगम अख्‍तर ने एक बार फिर 1949 में अपने मद्दाहों के शिकस्‍ता दिलों पर दस्‍तक दी। संगीत की दुनिया में दोबारा क़दम रखने के बाद उन्‍होंने लखनउ के ऑल इंडिया रेडियो से तीन ऐसी मधुर मीठी गज़लें और एक दादरा पेश किया जिन्‍होंने उनके शायकीन के दिलों को मोह लिया और एक बार फिर बेगम अख्‍तर अपने पूरे आबों ताब से संगीत की दुनिया और संगीत प्रेमियों के दिलों पर छा गई।
मशहूर म्‍यूजिक डायरेक्‍टर मदन मोहन ने उन्‍हें अपनी दो फिल्‍मों दाना पानी 1953 और एहसान 1954 में गाने का मौका दिया। उन्‍होंने अपने फन का ऐसा इस्‍तेमाल किया कि लोग उन्‍हें दाद देने पर मजबूर हो गए। ये दोनों फिल्‍में उस वक्‍त बहुत बडी़ हिट साबित हुईं। इसके दो गानों ऐ इश्‍क मुझे और तो कुछ याद और हमे दिल में बसा भी लो ने उन्‍हें बहुत शोहरत दिलाई और उनकी दिलकश व पुरकशिश आवाज की बिना पर उन्‍हें मलिकाए गज़ल के खिताब से नवाजा गया। बेगम अख्‍तर को लोगों ने जिन चाहतों से नवाजा वह उनका हक भी था। वक्‍त के साथ-साथ में मजीद सूज और गहराई पैदा हो गई थी जिसने उन्‍हें आज तक के लिए अमर कर दिया। बेगम अख्‍तर ने अपना आखिरी परफॉरमेंस अहमदाबाद में पेश किया। उसके बाद उनकी सेहत खराब रहने लगी और फिऱ संगीत की दुनिया का यह सूरज 30 अक्‍टूबर 1974 को अपने हजारों चाहने वालों को रोता हुआ छोड़कर उस दुनिया को सिधार गया जहां जाने के बाद कोई वापस नहीं आता।
बेगम अख्‍तर ने अदाकारी की, थियेटर भी किया, ठुमरी और दादरा भी गाया मगर गज़ल गायकी में उन्‍हें जो मकाम दिया वो किसी और से हासिल नहीं हो सका। इसके सबसे अहम वजह उनकी सुरीली आवाज थी। जो उनके मद्दाहों को गज़ल का हर लफ्‍ज महसूस करने पर मजबूर कर देती थी। उन्‍होंने उर्दू के मशहूर शायरों के कलाम को अपने मुतरन्निम आवाज के लिए इस्‍तेमाल किया। वो जो हममे तुममे करार था, न सोचा न समझा, दिवाना बनाना है तो, उज्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं, ये न थी हमारी किस्‍मत कि विसाले यार होता, राहे आशिकी के मारे, इतना तो जिंदगी में, कुछ तो दुनिया की, इश्‍क में गैरते जज्‍बात, लाई हयात आए कजा, गुल फेंके हैं गैरों की तरफ और इसके अलावा बेशुमार गज़ले उनकी गायकी की जी़नत बनी जो आज भी गज़ल शायकीन के कानों में रस घोलती रहती हैं।

11 comments:

Unknown said...

bahut achhee post
pyare bhai..............badhai

प्रकाश गोविंद said...

बेगम अख्तर जैसी हरदिल अजीज और अजीम
शख्सियत को अपनी पोस्ट में याद करके सराहनीय
कार्य किया है !

इसके लिए जितनी भी प्रशंसा करूँ कम है !

तहे दिल से शुभकामनाएं !!!

Anonymous said...

उफ़..
एक अलहदा आवाज़ की याद..
और जानकारीयों के लिए शुक्रिया जनाब....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah kya bat hai, narayan narayan

Anonymous said...

Veri nice.

इस्लामिक वेबदुनिया said...

पढ़कर अच्छा लगा

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है...

Anonymous said...

Nice post.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

मीडिया दूत said...

बहुत सुदर इतनी जानकारी देने के लिए बधाई के पात्र हैं आप

"अर्श" said...

बगम अख्तर साहिबा के लिए आपने जो लिखा है वाकई सलाम ... ये मेरी चाहिती ग़ज़ल गायिका हैं ... वो जो हम में तुम में करार था ... इनके बारे में जीतनी बात की जाये वो कम है .. इस महान हस्ती को मेरा सलाम...

अर्श