
सन्नाटों को चीर कर
आवाज़ें आती हैं
मत ताको नील गगन के चंदा को
मोती की तरह बिखरे सितारों को
देखो वह दूर परबत से लगे
झोंपड़े पर जहां
टिमटिमा रहा है इक दिया
बुढ़िया दुखयारी ठंड़ से
थर थर कांप रही है !
हां, आवाज़ें आती हैं
बारिश की बूंदों के शोर को दफ्न करके
तुम झूम रहे हो
अंबर का अमृत पी कर
वह दोखो,
फूस का छोटा सा इक घर
भीग गया है इन बौछारों से
और दहक़ां का कुंबा
घर से पानी काछ रहा है
सुनो !
बीत गए वह दिन
जब तुम अपने आप में सिमटे होते थे!!!
(दहक़ां : kisan)
18 comments:
गरीब का दर्द ...संवेदनशील रचना ..
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
बीत गए वह दिन
जब तुम अपने आप में सिमटे होते थे!!!
ज़िन्दगी की अस्लियत से रु.ब. रु करवाते हुए
आपके नेक विचार ....
काव्या के रूप में अनोखा आह्वान !!
आभार .
gahre ehsaas liye sunder abhivykti.
संवेदनशील रचना ।
गहरा सोच लिए रचना
अच्छी प्रस्तुति |बधाई
आशा
यही यथार्थ है....
सुंदर भावों से ओत-प्रोत अच्छी कविता
bahoot hi gahre jazbat..........
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Gone are the days.....So true !
Lovely creation !
.
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
आप हमारे ब्लॉग पर आये और अपनी राय से नवाज़ा इसके लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ .......आपका ब्लॉग अच्छा लगा ....सुन्दर रचना लिखी है आपने .......शुभकामनाये |
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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"हां, आवाज़ें आती हैं
बारिश की बूंदों के शोर को दफ्न करके
तुम झूम रहे हो
अंबर का अमृत पी कर
वह दोखो,
फूस का छोटा सा इक घर
भीग गया है इन बौछारों से
और दहक़ां का कुंबा
घर से पानी काछ रहा है"... desh me kisano par bahut kam likha jaa raha hai.. aise me aapki kavita aakarship aur udwelit kar rahi hai... sunder aur maarmik kavita ke liye badhai..
झोंपड़े पर जहां
टिमटिमा रहा है इक दिया
बुढ़िया दुखयारी ठंड़ से
थर थर कांप रही है !..... marmik rachna... prakriti ke prabhav ka doosra pahloo hai yah.
अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण.शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है!बधाई!
bahut hi gahri soch....
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना ! बधाई!
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