
हर शाम तुम्हारी यादों का इक दीप जलाता रहता हूं
जो नग़मे तुम ने गाए थे उनको ही गाता रहता हूं
हर आन तुम्हारे मिलने की चाहत सी मचलती रहती है
हर लम्हा तेरी पलकों से सायों की ज़रूरत रहती है
फिर दूर कहीं वीराने में आवाज़ सुनाई देती है
चाहत के इस पागलपन में आवाज़ का पीछा करता हूं
हर शाम तुम्हारी चाहत का इक दीप जलाता रहता हूं
जाड़ों की ठिठुरती रातें हों या कजरारे बरसात के दिन
तुम साथ नहीं हो ऐसे में मैं क्या जानूं सौग़ात के दिन
दिल साथ तुम्हारे रहता है और सांसें चलती रहती हैं
एहसास सताता रहता है और धडकन धडकती रहती है
उम्मीद तड़प कर उठती है तुझे पाने को ज़िद करती है
चाहत के इस पागलपन में जाने क्या क्या करता हूं
हर शाम तुम्हारी यादों का इक दीप जलाता रहता हूं
जो नग़मे तुम ने गाए थे उनको ही गाता रहता हूं