
दफ्अतन तुम पे इक निगाह पड़ी
दिल की दुनिया को हार बैठे हम
ज़िंदगी थी मेरी अमानत-ए-गैर
वक्त रूख़्सत हुआ मोहब्बत का
अब के नफरत का दौर आया है
ज़िंदगी दर्द-ए-दिल को पूजती है
तुम से बिछड़े तो याद आया है
अब के फिर ना मिलें ख़्यालों में
ख़्वाब में रो के हम ने पाया है
दर्द, आंसू, फरेब, दगा
ज़ख़्म अनगिनत तुम से खाया है
फिर वही भूल हो गई उससे
गैर का ख़त मेरे नाम आया है
ज़िंदगी थी मेरी अमानत-ए-गैर
उसको तुम पर ही हार बैठे हम
####वक्त रूख़्सत हुआ मोहब्बत का
अब के नफरत का दौर आया है
ज़िंदगी दर्द-ए-दिल को पूजती है
तुम से बिछड़े तो याद आया है
अब के फिर ना मिलें ख़्यालों में
ख़्वाब में रो के हम ने पाया है
दर्द, आंसू, फरेब, दगा
ज़ख़्म अनगिनत तुम से खाया है
फिर वही भूल हो गई उससे
गैर का ख़त मेरे नाम आया है