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Sunday 22 November 2009

तुम ईद मना लो तनहा तनहा हम रो लेंगे तनहा ही



मेरी पलकों पर जो सपने थे पल भर में चकनाचूर हुए
क्या ख़बर सुनाई ज़ालिम ने और हम ग़म से रनजूर हुए
क्या सोचा था इस बार अगर हम उनसे मिलने जाएंगे
हर वक्त हमारे साथ रहें कुछ ऐसे लम्हे लाएंगे
पर ख़ता हमारी थी शायद जो सपना पूरा हो सका
क्या ख़बर सुनाई ज़ालिम ने हर सपना अपना टूटा था
मां बाप की हसरत रोती रही हर आस हमारी टूट गई
उम्मीद की इक हल्की सी किरन बस सामने मेरे बैठी थी
दामन पे हमारे दाग़ ना था फिर ऐसी सज़ा क्यों हम को मिली
हर वक्त यही दिल सोचा किया आंखें भी उसी के साथ रहीं
उस वादे का क्या करते हम जो उनसे लिया था पहले ही
उन नैनों को कैसे रूलाते हम जो खुशियां भूली बैठी थीं
कैसे ये कहते आएंगे ना हम इस बार रहेंगे तनहा ही
तुम ईद मना लो तनहा तनहा हम रो लेंगे तनहा ही

13 comments:

Sonalika said...

kya bhai
tum to dil dila hi dukha dete ho
meri dua hai tumhare sath tumri edd tanha nahi jayegi

bachche tumne likha acha hai

निर्मला कपिला said...

कैसे ये कहते आएंगे ना हम इस बार रहेंगे तनहा ही
तुम ईद मना लो तनहा तनहा हम रो लेंगे तनहा ही
बहुत बडिया लिखी है दिल की बात । चलो शायद हमारे आशीर्वाद का असर हो जाये तुम तन्हा नहीं रहोगे बेटा । शुभकामनायें

अजय कुमार said...

उम्दा लिखा है आपने, तंहाई जल्दी दूर हो दुआ करते हैं

समयचक्र said...

बहुत उम्दा तुम तन्हा ईद न मनाना ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

dil ke jazbaat bahut khoobi se ukere hain.....shubhkamnayen

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!

Anonymous said...

अच्छा। बहुत खूब। दिल दुख गया। बहुत खूब।

शबनम खान said...

aise kaise razi sahab..hum aapko yu rote hue Eid nahi manane denge....
bohot dard bhare alfaz ha...
bohot khoob...

vikas vashisth said...

कैसे मनाने देंगे तुमको हम ईद तन्हा तन्हा
वो भी आएगा ज़रूर जिसने किया तुमको तन्हा
बहुत खूब...लेकिन सच कहें तन्हा तन्हा तन्हा तन्हा अच्छा नहीं लगता...रचना अच्छी है...

شہروز said...

शुभ अभिवादन! दिनों बाद अंतरजाल पर! न जाने क्या लिख डाला आप ने! सुभान अल्लाह! खूब लेखन है आपका अंदाज़ भी निराल.खूब लिखिए. खूब पढ़िए!

अमृत कुमार तिवारी said...

बहुत ही मार्मिक रचना....
बस इक गम-ए-दौरां का हक है हम पर
मैने वो सांस भी तेरे लिए रख छोड़ी है....

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत ही शानदार लिखा है आपने...बहुत खूब।