
अगर हिन्दुस्तानी सिनेमा को राजकपूर की अदाकारी ने दीवाना बनाया था, रफी के सुरों ने नचाया था, नौशाद की धुनों ने एक नई दुनिया में खो जाने पर मजबूर किया था, साहिर के लिखे गानों नें जिन्दगी की तल्ख़ सच्चाईयों से सामना कराया था तो मजरूह सुलतानपूरी के गीतों ने कभी आंखों से बरसात करवाई तो कभी उदास आंखों में खुशियों की लहर दौड़ा दी।
जिन्दगी के हर फलसफा और जिन्दगी के हर रंग रूप को करीब चार दहाईयों तक अपने गानों में पेश करने वाले मजरूह सुलतानपूरी का जन्म एक पुलिस वाले के घर हुआ था जिसने उन्हें आला तालीम दिलाई, उन्हें एक महान आदमी के रूप में देखने के ख्वाब पाले। मगर शायरी से मुहब्बत करने वाले मजरूह ने डाक्टरी के पेशे को छोड़ कर शायरी की दुनिया में कदम रख दिया। यहां जो मुहब्बतें उनको मिलीं उस ने इन्हें ये मैदान ना छोडने पर मजबूर कर दिया। और फिर शायरी का ये सफर पूरे शान से शुरू हो गया। जब तवज्जह का मरकज़ शायरी बनी तो जिगर मुरादाबादी जैसे अज़ीम शायर उनके उस्ताद के रूप में सामने आए। इस दौरान मुशायरों में आने जाने का सिलसिला चलता रहा।
1945 में भी ऐसे ही एक मुशायरे में शिरकत के लिए मजरूह मुम्बई गए। मुम्बई में होने वाले मुशायरे उस वक्त खास अहमियत इस वजह से रखते थे क्योंकि वहां फिल्मी दुनिया की कई बडी हस्तियां तशरीफ रखती थी और कई दफा किसी शायर का कलाम पसंद आ जाता तो उस की जिन्दगी बदल ही जाती थी। यही हुआ मजरूह के साथ भी, उस मुशायरे में फिल्मसाज़ और हिदायतकार ए आर कारदार को मजरूह ने बहुत मुतअस्सिर किया जिस के चलते उन्होंने मजरूह को अपनी फिल्म में गाना लिखने की पेशकश की मगर मजरूह ने इनकार कर दिया। लेकिन जिगर मुरादाबादी के समझाने के बाद उन्हों ने गाने लिखने के लिए अपनी रज़ामनदी ज़ाहिर कर दी। संगीतकार नौशाद ने उन्हें एक धुन सुनाई और उस पर गाना लिखने को कहा, उस पर मजरूह की कलम ने जो गाना लिखा उस का मुखडा था कि उनके गेसू बिखरे बादल आए झूम के। मजरूह के लिखने का ये वह अंदाज़ था जिसने नौशाद जैसे अज़ीम संगीतकार को अपना दीवाना बना लिया था।
1946 में फिल्म शाहजहां में जब पहली बार उन्हें अपने हुनर का जलवा दिखाने का मौका मिला तो वो संगीत प्रेमियों के दिलों पर पूरी तरह छा गए। इस फिल्म में मजरूह ने कई तरह के गाने लिखे। कर लीजिए चल कर मेरी जन्नत के नजारे और जब दिल ही टूट गया तो जी कर ही क्या करेंगे जैसे गानों ने इस फिल्म को कामियाबी की मंजिलों तक पहुंचाया और खुद मजरूह को भी एक नई पहचान दे गए।
1949 में उन्हें एक बडा ब्रेक फिल्म अंदाज़ में मिला और उस फिल्म में नौशाद की धुनों पर जिस तरह के गाने मजरूह ने लिखे वह दिल के अंदर घर कर जाने वाले थे। हम आज कहीं दिल खो बैठे, कोई मेरे दिल में खुशी बन के आया, झूम झूम के नाचो आज, टूटे ना टूटे साथ हमारा, उठाए जा उनके सितम और डर ना मुहब्बत कर ले जैसे गानों में मजरूह ने जिस बेबाक अंदाज़ से जिन्दगी और मुहब्बत को पेश किया वह काबिले तारीफ था। इस फिल्म के बाद मजरूह के पास काम की कमी नही रही और वह सारे संगीतकारों के चहेते बन गए।
मजरूह सुलतानपूरी ने हर दौर के महान संगीतकारों के साथ काम किया। नौशाद,ओ पी नय्यर और आर डी बर्मन से लेकर जतिन ललित और ए आर रहमान जैसे संगीतकारों की धुनों पर मजरूह के गानों ने खूब जलवे बिखेरे।
शाहजहां, अंदाज, आरज़ू, आर पार, पेईंग गेस्ट, नौ दो गयारह, दिल्ली का ठग, काला पानी, सुजाता, बाम्बे का बाबू, बात एक रात की, ममता, तीसरी मंज़िल, अभिमान, यादों की बारात, हम किसी से कम नहीं, कयामत से कयामत तक, जो जीता वही सिकंदर और खामोशी जैसी यादगार फिल्मों में मजरूह ने के एल सहगल से राकुमार और आमिर खान जैसे सुपरस्टारों के लिए गाने लिखें है।
मजरूह ने हर तरह के गाने लिखे। तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है, रात कली इक ख्वाब में आई, ओ मेरे दिल के चैन, चलो सजना जहां तक घटा चले, चुरा लिया है तुम ने जो दिल को, छोड दो आंचल ज़माना क्या कहे गा, आजा पिया तोहे प्यार दूं, अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी, बचना ऐ हसीनों और बाहों के दरमियां जैसे गानों में अगर देखा जाए तो मुहब्बत के हर पल का मज़ा रखा है। बेचैनी, तन्हाई, तड़प, मिलन और चंचलता का पूरा रंग इन गानों में देखने को मिलता है। यही नहीं पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा और रूक जाना नहीं तू कहीं हार के जैसे गाने भी मजरूह की कलम से ही निकले हुऐ शाहकार हैं जिसने नौजवानों के अंदर हौसले को जन्म दिया है। एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जैसे गानों से मजरूह की महान्ता का बडे अच्छे अंदाज़ से पता लगाया जा सकता है।
पूरी दुनिया ने मजरूह की सलाहियतों का लोहा माना था। उन पर अवॉर्डों की बारिश हुई थी। दादा साहब फालके अवॉर्ड तक उनकी झूली में आ चुके हैं। इसके अलावा और कई अवॉर्डों से उन्हें सम्मानित किया गया। फिल्म दोस्ती के सुपर हिट गीत चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया था।
चार दहाईयों तक अपनी शायरी और अपनी गीतों से संगीत प्रेमियों के दिलों पर दस्तक देने वाले मजरूह ने करीब तीन हज़ार से ज्यादा गाने लिखे।