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Friday 21 August 2009

मेरी रुसवाई तेरे काम आए

मेरी रुसवाई तेरे काम आए
ज़िन्दगी कुछ तो मेरे काम आए
कुछ दिनों से यही चाहत है
उसका पैगाम मेरे नाम आए
उसको मिलते रहे खुशियों के सुराग
हर सिसकता हुआ गम मेरे नाम आए
मुद्दतें बीत गयी बिछडे हुए
वस्ल की फिर कोई रात आए

11 comments:

M VERMA said...

पैगाम तो आना ही है.
अच्छी रचना

Vinay said...

सुन्दर भावार्थ वाली रचना
---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

अर्चना तिवारी said...

सुंदर ग़ज़ल...

डिम्पल मल्होत्रा said...

कुछ दिनों से यही चाहत है
उसका पैगाम मेरे नाम आए ..bahut sunder....

ओम आर्य said...

बेहद ही सुन्दर लगे आपके भाव ......बहुत बहुत ही बधाई.......

ओम आर्य said...

बेहद ही सुन्दर लगे आपके भाव ......बहुत बहुत ही बधाई.......

kshama said...

अब रुसवाईयों से क्या डरें ?
जब तन्हाईयाँ सरे आम हो गयीं ?
खता तो नही की थी एकभी ,
पर सजाएँ सरे आम मिल गयीं ?
काम बनही गया,जो रुसवा कर गए,
ता-उम्र तन्हाई की सज़ा दे गए..!

सदा said...

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Anonymous said...

Dil se aawaaz nikli hai bhaai.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

सुशील छौक्कर said...

बेहतरीन।

Anonymous said...

accha likha hai