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Thursday, 29 April 2010

untitled


इन दिनो कुछ अजीब आलम
प्यार की राह देखती हूं मैं

ज़िंदगी की तलाश में शब भर
चांद तारों से बातें करती हूं

प्यार, इक़रार और वफ़ा हमदम
सबके मानी तलाशती हूं मैं

ज़ेहन में उल्झनों का दफ़्तर है
रात आंखों में काटती हूं मैं

जिसको पाना था उसको पा तो गई
फिर भी तन्हाईयों में जीती हूं मैं

क्यों ये लगता है वह नहीं मेरा
सांस दर सांस जिस पे मरती हूं मैं

वह जो धड़कन में मेरी बसता है
शायद उसके लिए नहीं हूं मैं