जो दिलों को तोड़ दे वो अफसुरदगी,अछ्छी नही लगती
ला के ऐसे मोड़ पर यों बेरूखी,अछ्छी नही लगती
अब तो बस दुनिया का ये है फलसफा
मुफ्लिसों के घर में हो रौशनी,अछ्छी नही लगती
मुद्दतों से कैद हूँ दुनिया के इस जंजाल में
प्यार है क्या चीज़ और दीवानगी, अछ्छी नही लगती
तुम हमें जब से मिले सारा जहां अपना हुआ
मुझ को अब तेरे सिवा की दोस्ती, अछ्छी नही लगती
अब हमेशा आंख मे आंसू लिए फिरता हूँ मैं
मेरे चेहरे पर उसे कोई हंसी, अछ्छी नही लगती
तेरा चेहरा भी गुलाबों की तरह खिलता रहे
आंख में तेरे हमें कोई नमी, अछ्छी नही लगती
प्यार ही जब रूठ कर हो जाए इस दिल से जुदा
घर में हो कोई खुशी, अछ्छी नही लगती
11 comments:
प्यार ही जब रूठ कर हो जाए इस दिल से जुदा
घर में हो कोई खुशी, अछ्छी नही लगती
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्त किया है आपने तो.
तुम हमें जब से मिले सारा जहां अपना हुआ
मुझ को अब तेरे सिवा की दोस्ती, अछ्छी नही लगती...
sunder rachna
tera chehra gulabon ki trah khilta rahe
vah kya bat hai.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है
इश्क में ऐसा ही होता है कि कोई और बात तक अच्छी नहीं लगती | क्या ' मुझ को अब तेरे सिवा की दोस्ती, अछ्छी नही लगती...'
की जगह पर ' मुझ को अब तेरे सिवा किसी की दोस्ती, अच्छी नही लगती...'लिखा जा सकता है ?
बधाई हो आप वो कशिश बयान कर पाए हैं |
kya khoob kaha...............
bahut khoob kaha !
BAHUT HI KHUB ......SAHI HAI AISA HI HOTA HAI JAB WO RUTH JAYE
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
kya baat hai razi shahab
अब तो बस दुनिया का ये है फलसफा
मुफ्लिसों के घर में हो रौशनी,अछ्छी नही लगती
तरक्की कर रहे हो मुबारक हो
बहुत सुन्दर हि गजल है..
bahut hi umda khyal hain.
vandana-zindagi.blogspot.com
hey Razi,
when u really love some it's happens...
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