अब हर रात निकलने वाला चाँद
मुझे दिखाता है इक अकस
नीद से बोझल पलकोँ के साथ
जब मैँ चाँद की तरफ देखता हूँ
इक अनजाने चेहरे का अकस
उभर कर आता है मेरे सामने
दिमाग पर जोर देता हूँ
कौन है?
किस का अक्स है ?
मुझे ही क्यों नजर आता है
अकेली रात में
जब नीद आँखों के परदे से
दूर बहुत दूर चली जाए
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना
क्यों
शायद इस वजह से कि
उस में नजर आने वाला अक्स
आँखों के रासते दिल तक
पहुँच चुका है
हर घडी
हर लम्हा
हर पल
वो साया बन कर मेरे
साथ रहता है
हाँ शायद इसी लिऐ
जब नीद आँखों के परदे से
दूर बहुत दूर चली जाए
सारी दुनिया नीद की आगोश
में पनाह ले ले
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना ।
मुझे दिखाता है इक अकस
नीद से बोझल पलकोँ के साथ
जब मैँ चाँद की तरफ देखता हूँ
इक अनजाने चेहरे का अकस
उभर कर आता है मेरे सामने
दिमाग पर जोर देता हूँ
कौन है?
किस का अक्स है ?
मुझे ही क्यों नजर आता है
अकेली रात में
जब नीद आँखों के परदे से
दूर बहुत दूर चली जाए
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना
क्यों
शायद इस वजह से कि
उस में नजर आने वाला अक्स
आँखों के रासते दिल तक
पहुँच चुका है
हर घडी
हर लम्हा
हर पल
वो साया बन कर मेरे
साथ रहता है
हाँ शायद इसी लिऐ
जब नीद आँखों के परदे से
दूर बहुत दूर चली जाए
सारी दुनिया नीद की आगोश
में पनाह ले ले
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना ।
6 comments:
बहुत खूबसूरत
लेकिन रजी साहब ये रातों को जागना
यूं चांद में अक्स ढूंढना
अच्छी बात नहीं
लोगों को फिर शक होगा तुम पर
बहुत अच्छा लिखा
ek behatarin rachana padhawane keliye ......bahut bahut shukriya .....atisundar ......aise hi likhate rahe
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना ।
वाकई बहुत सुन्दर लगता है.
रचना बहुत सुन्दर
कितना अच्छा लगता है
तारों के भीड़ में तनहा
चमकते चाँद देखते रहना ।
वाकई बहुत सुन्दर लगता है.
बहुत सुन्दर ये सोनलिका जी क्या कह रही है जरा गौर फर्मायें बेटाजी
bahut khi khoobsoorat abhivyakti........eil ke jazbaton ko ukerti rachna
sach kaha aapne ..taron ke jhund me raat ko chand ko niharana bada hi achcha lagata hai..
aapne kavita ke maddhaym se sundar bhav piroya..
badhiya laga..badhayi..
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