...जब ठंड ने जवां ख़ून को सर्द कर दिया था...शराब का सहारा लेकर गर्मी हासिल करने की कोशिश की जा रही थी...पूरा घर बिजली के कुमकुमों, सुरेले साज़ों और मस्त धुनों पर थिरकती जवानियों से पटा हुआ था...उस वक्त गेट पर बैठा बूढ़ा दरबान तेज़ हवाओं से लड़ रही अपनी फटी चादर में खुद को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था...
9 comments:
achi koshish
इसे लघुकथा कहूंम तो सही है बहुत अच्छी तरह चन्द पँक्तिओं मे अमीर गरीब का भेद बता दिया शुभकामनायें । बहुत संवेदनशील हो
bahut hi suksham drishti aur utni hi gahanta se prastuti.........badhayi.
marmsparshi laghu katha.....
tikshn avlokan
वाकई में अच्छी लघु कथा। निर्मला कपिला जी ने सटिक बात कही है।
क्या बात कह दी रज़ी साहब आपने। गूढ बात।
रज़ी जी आपने तो वो महसूस कर लिया जो अच्छे अच्छे अनदेखा कर गए...
बहुत अच्छा...
सही कहा उसके दर्द को बहुत कम लोग महसूस कर पाते हैं ....रात को गली में दिलती उसकी आहट सर्दी के निर्मम मिजाज से दिल को झंझोर देती है ..
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