धूप बढ़ जाती है हर रोज़ सरे शाम के बाद
तुम ज़रा ज़ुल्फ को लहराओ तो कोई बात बने
मैं तो हर सिम्त से तैय्यार हूं बर्बादी को
तुम मगर लूटने आओ तो कोई बात बने
दिल की हसरत ही ना मिट जाए कहीं मेरे सनम
चांदनी रात में आ जाओ तो कोई बात बने
वैसे हैं चाहने वाले तो बहुत दुनिया में
तुम मगर टूट के चाहो तो कोई बात बने
हम मोहब्बत का नहीं कोई सिला मांगें गे
तुम ख़ुशी जो अगर चाहो तो कोई बात बने
ऐसी तन्हाई है अब के कि ख़त्म होती नहीं
तेरी पाज़ेब छनक जाए तो कोई बात बने