Tuesday 15 September 2009
लहरों का तड़पना...
आज बहुत दिनों बाद साहिल पर जाने का इत्तेफाक हुआ था, तुम से दूर हुए शायद एक साल का लंबा वक्त गुज़र चुका था, तेज़ हवा के झोंके थे और लहरों की पहुंच से दूर रेत का उड़ता हुआ मंज़र, तंहा खुजूर के पेड़ के नीचे में भी तनहा था, ये और बात है मेरे साथ कुछ हसीन यादें भी थीं, शाम का वक्त हो रहा था सूरज अपने बिस्तर समेट रहा था, अचानक लहरों में तुगयानी सी आई और एक सिकंड़ के अंदर हज़ारों लहरें साहिल पर अपना सर पटक कर चली गईं, मेरी निगाहें खुद ब खुद सलेटी मायल सुर्ख आसमान के किनारे बहुत नीचे ढलान पर लुढ़कते हुए आफताब की तरफ उठ गईं, आफताब बुझते दिए की तरह ज़ोर लगा कर रौशन होने की कोशिश कर रहा था, मेरे ख्याल में वह हादसा भी इसी वक्त हुआ था जब तुम ने पहली बार अपने हसीन पांव समंदर के खारे पानी में उतारे थे, हां, शायद तुम्हारे पैरों की मिठास पाकर उस वक्त भी लहरों ने तुम्हारी कदमबोसी की थी, आज जब लहरों को तुम्हारे नाजुक पैर को छूने के लिए ठीक उसी वक्त तडप तडप कर साहिल पर सर पटकते देखा तब आंखों ने साथ छोड दिया और उन्ही लहरों के साथ रो पड़ी, जो मेरी तरह तुम्हारा इन्तेज़ार कर कर के मर रही हैं, ख्यालों में शोर मचा हुआ था काश तुम अपने पैर समंदर में न धुले होते तो आज इन लहरों का ये हाल न होता।
10 comments:
man ke bhavon ko aap bakhoobi likhte hain
सही लिखा है आपने मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
दो तीन दिन से इस ब्लाग को याद कर रही थी बस ढूँढने का समय ही नहीं मिला आज अचानक नज़र पडी। आपकी रचनायें बहुत भावनात्मक होती हैं दिल को छू लेती हैं सुन्दर रचना के लिये बधाई
shabd kam pad rahe hain prashansa ke liye.........kis andaz mein vyatha pesh ki hai..........lajawaab abhivyakti.
जो मेरी तरह तुम्हारा इन्तेज़ार कर कर के मर रही हैं, ख्यालों में शोर मचा हुआ था काश तुम अपने पैर समंदर में न धुले होते तो आज इन लहरों का ये हाल न होता। ..pyaar ka yahi sila hai...jitna jyada pyar utna jyada intzar....khoobsurat khayalo ki udaan hai apki...
रज़ी साहब...मन मेरा मन हो जाता है...जब आपके ब्लॉग पर आता हूं....बनावटी बातों के जाल से निकल कर मन के प्राकृतिक भाव को महसूस करता हूं। बस हूं ही लिखते रहिए...
खैर चाय की पीने की बात अधूरी रह गई...ना ही आपका कोई कॉल आया ना ही जामिया में चाय की दरख्वास्त...दनाब दिल्ली की गर्मी रफ्फू चक्कर होने वाली है। क्यों नहीं आने वाली ठंठी का एहतराम गरमा गरम चाय की प्यालियों और कुछ खाबों ख्यालातों से कर दिया जाय। .....
बहुत प्राकृतिक।
कोमल कांत भावों से मन का कोना कोना जैसे रोशन हो उठा...सुन्दर रचना...और हां सर्दियों की खुशामदीद में हमें भी शामिल करना ना भूलिएगा।
Lahron ki tadpan paddhkar khud ke "Dard" ka ahshash ho jata hai.
khoobsurati se likhe gaye ehsaas.....bahut khoob
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