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Monday 17 August 2009

आँचल से खेलती लडकियां

कितनी अजीब होती हैं ये लड़कियां ...कितना अच्छा लगता है उन्हें सपनों में जीना ...बचपन ही से किसी नामालूम और अनजान से चेहरे पर फ़िदा हो जाती हैं , सपनों में आने वाले घोङसवार को अपना शहजादा बना कर हर लम्हा हर पल उस के नाम की मालाएं जब्ती हैं ... उस के साथ जीने के ख्वाब बुनती हैं ...अपना घर और लान की खोब्सूरती को सोच कर खुश होती हैं ...उस अनजान शहजादे की बाहों और पनाहों का सहारा ढूंङती है, उन की चूडियाँ खनकती हैं उन्ही के लिए और जब पायल बजती है तो भी उसी की खातिर ...आती जाती सांसें उसी का नाम लेकर सफर तै करती हैं ... और जब वो किसी और के आँचल में आराम करने लगता है तो टूटे दिल के हर टुकड़े को पल्लू में समेटने की नाकाम कोशिश ज़िन्दगी भर करती रहती हैं ...ख़ुद किए गुनाहों की सज़ा भुगतती हैं ...शायद नादान होती हैं या कमअक्ल ये तो नही मालूम मगर हाँ ... छोटीउम्र से सपनों की दुनिया में खो जाना उन की फितरत में शामिल होता है ...साहिल के बहुत करीब बैठ कर बचपन ही से रेत के घरौंदे बनाने लगती हैं ...इतना भी ख्याल नही रखती हैं की कब कोई सरकश लहर आजाये भरोसा नही ... कब उन के अरमानों के इस शीश महल को अपने थपेडों से इस तरह झिंझोड़ दे कि उस कि बुनियादें तक हिल जाएँ ...मगर नहीं वो वही काम करती हैं और फिर तन्हाई का दर्द आंखों में लिए ज़िन्दगी भर किसी अनजान से शहजादे के साए से प्यार करने का जुर्म करने पर पछताती हैं ...साहिल पर लहरों से बेपरवाह होकर ख्वाबों का महल बनने कि खता पर अफसुर्दा होती हैं मगर उस तो वक्त तो उन का कुछ नही हो सकता सिवा इस के के कि वो समंदर के साहिल पर जाएँ और अपना आँचल अपनी उँगलियों में लपेटें और फ़िर खोल कर उन्हें उडाने की बेकार कोशिश करें ...

13 comments:

रंजू भाटिया said...

लडकियां ऐसी ही होती है :) सही कहा आपने

ओम आर्य said...

बिल्कुल सच लग रहा है ........क्योकि लड्कियो को मै भी जांता हुँथोडा बहुत........सुन्दर

डिम्पल मल्होत्रा said...

बचपन ही से किसी नामालूम और अनजान से चेहरे पर फ़िदा हो जाती हैं , सपनों में आने वाले घोङसवार को अपना शहजादा बना कर हर लम्हा हर पल उस के नाम की मालाएं जब्ती हैं ...speechless....

Anonymous said...

bahut khoob likha hai bhai.ladkiyo ko kuch hi shabdo me bayan kar diya....umda vichaar.

RAJNISH PARIHAR said...

आपका ब्लॉग और आपके विचार बहुत अच्छे लगे...!!मेरी शुभकामनायें...

निर्मला कपिला said...

और फिर तन्हाई का दर्द आंखों में लिए ज़िन्दगी भर किसी अनजान से शहजादे के साए से प्यार करने का जुर्म करने पर पछताती हैं ...साहिल पर लहरों से बेपरवाह होकर ख्वाबों का महल बनने कि खता पर अफसुर्दा होती हैं
bahut maarmik abhivyakti hai aapkee lekhanee ko kyaa kahoon laajvaab adbhut bahut samvedanaayen smete rakhati haishubhakamnaye

surya goyal said...

पंक्तियों में बड़े ही सुन्दर भावः पेश किये है आपने. बधाई. आपकी और मेरी लेखनी में मात्र इतना ही फर्क है की आप अपने दिल के भावः को शब्दों में पिरो कर कविता बनाते हो और मै उन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. मेरी गुफ्तगू पर आपका भी स्वागत है. www.gooftgu.blogspot.com

अनिल कान्त said...

हाँ ऐसी ही तो होती हैं

Unknown said...

WAAH JANAAB !
BAHUT ACHHA KAHAA...
VAAKAI LADKIYON KI MANODASHAA PAR AISEE RACHNAAON KA SWAAGAT HONA CHAHIYE.........

kshama said...

Isee maasoomiyat kee bayanee chal rahee hai' bikhare sitare pe"!

Aap bachpan me le gaye!

Rajni Kansal said...

bahut sundar.... ladkiyon ko bahut kareeb se jante hain aap....
aur ladkon ko bhi..

संजीव गौतम said...

वाकई. मेरी दो बेटिया हैं दोनों को अभी से अपने लडकी होने पर गर्व है. शानदार अभिव्यक्ति दी है आपने.

vikas vashisth said...

इसे सिर्फ लड़कियों की ही कहानी कह देना उचित नहीं होगा। और जहां तक सपने सजाने की बात है तो ये बतलाओ दोस्त कि तुमने कभी सपने नहीं सजाए। या फिर तुम्हे कभी दर्द नहीं हुआ...